सरकारी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पतालों में नहीं लग रहा डॉक्टरों का मन, नौकरी से दे रहे इस्तीफा

डॉक्टरी पेशा जिसे मध्यमवर्गीय और आर्थिकरूप से कमजोर लोग भगवान का दर्जा देते है। डॉक्टर वह व्यक्ति होता है जो मरते हुए इंसान को मौत के मुंह खींच लाने का प्रयास करता है। कभी डॉक्टरी पेशा अपना कर लोग समाजसेवा के लिए आते थे जो लोगों का इलाज करके उनके स्वस्थ्य होने पर खुद को संतुष्ट समझते थे लेकिन समय के साथ यह पेशा भी रूपए के वजन पर टिक गया है। डॉक्टरी पैशा इसतरह का हो गया कि आज कोई भी डॉक्टर इलाज से ज्यादा कमाई पर ध्यान दे रहा है। आज डॉक्टरों को विदेशों में सेवाएं देने में अपना करियर नजर आता है।

प्रदेश के 41 डॉक्टरों ने दिया इस्तीफा
प्रदेश के सुपर स्पेशिएलिटी अस्पतालों से डॉक्टरों का पलायन जारी है। अब तक 41 डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं। इनमें जबलपुर से 13, इंदौर से 11, रीवा से 10 और ग्वालियर से 7 डॉक्टर शामिल हैं। डॉक्टरों की कमी के कारण मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है।

क्या होगा सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल का?
मध्य प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर इंदौर, रीवा, जबलपुर और ग्वालियर में सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल खोले गए थे। इनका उद्देश्य है मरीजों को शासकीय अस्पतालों में ही आधुनिक इलाज की सुविधा मिल सके ताकि उन्हें दूसरे राज्यों में इलाज के लिए नहीं जाना पड़े। लेकिन कुछ ही वर्षों में इन अस्पतालों की स्थिति खराब हो गई है। यहां से डॉक्टर पलायन कर रहे हैं। चारों सुपर स्पेशिएलिटी अस्पतालों से अब तक 41 डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं। इनमें जबलपुर से 13, इंदौर से 11, रीवा से 10 और ग्वालियर से सात डॉक्टर शामिल हैं।

खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा
डाक्टरों की कमी का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। उन्हें आधुनिक इलाज से वंचित होना पड़ रहा है या फिर इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। डाक्टरों के जाने के कारण संसाधनों की कमी, प्रमोशन का न होना, बेहतर अवसर, कम वेतन आदि हैं। यहां के डॉक्टर निजी प्रैक्टिस भी नहीं कर सकते। डाक्टरों का कहना है कि ज्वाइनिंग के समय जो वादे किए गए थे, वे पूरे नहीं हुए। यहां से छोड़कर जाने वाले सभी डॉक्टर अभी बड़े निजी अस्पतालों में कार्यरत हैं।

60 प्रतिशत पद खाली
डाक्टरों की कमी का सीधा असर अस्पतालों की सेवाओं पर पड़ रहा है। सुपर स्पेशिएलिटी अस्पतालों में करीब 60 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। यानी आधे से ज्यादा विभाग अधूरे स्टाफ के भरोसे चल रहे हैं। इससे सबसे ज्यादा परेशानी मरीजों को हो रही है। कैंसर, न्यूरो, कार्डियक जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज प्रभावित हो रहा है। कई बार मरीजों को कहा जाता है कि विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए उन्हें बाहर इलाज करवाना पड़ता है।

इंदौर के इन डॉक्टरो ने दिया इस्तीफा
– डॉ. अभिषेक राठौर(कार्डियोलाजी)
– डॉ. प्रशांत सिंह (न्यूरोसर्जरी)
– डॉ. भूषण शाह (कार्डियोलाजी)
– डॉ. अखिलेश (न्यूरोलाजी)
– डॉ. निपुन (न्यूरोलाजी)
– डॉ. मुनीर अहमद खान (कार्डियक एनेस्थेसिया)
– डॉ. ईशा तिवारी (नेफ्रोलाजी)
– डॉ. जय अरोरा (नेफ्रोलाजी)
– डॉ. चयनिका (न्यूरो एनेस्थिसिया)
– डॉ. शशांक नाहर (न्यूरोसर्जरी)
– डॉ. प्रशांत (न्यूरोसर्जरी)

स्वास्थ्य मंत्री भी नहीं रोक सके पलायन
स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल भी अपने ही जिले में डाक्टरों का पलायन नहीं रोक पा रहे हैं। रीवा स्थित सुपर स्पेशिएलिटी अस्पतालों में सुविधाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे तो हो रहे हैं, लेकिन यहां इलाज के लिए पर्याप्त डॉक्टर ही नहीं हैं। रीवा से ही 10 डॉक्टर नौकरी छोड़कर चले गए हैं।