आज है हरतालिका तीज, शिव-पार्वती पूजन का पावन दिन, जानें शुभ समय, व्रत विधि, कथा और मंत्र

आज देशभर में हरतालिका तीज का पर्व बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। इसे तीजा के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं निर्जला उपवास रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और अपने पति की दीर्घायु एवं वैवाहिक सुख की कामना करती हैं। वहीं, अविवाहित कन्याएं भी मनचाहे वर की प्राप्ति हेतु इस व्रत को करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था और उसी तपस्या के प्रभाव से उन्हें शिवजी पति रूप में प्राप्त हुए। तभी से यह व्रत विशेष महत्व रखता है।

व्रत की पौराणिक कथा

शिव महापुराण के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए अनेक जन्मों तक कठोर तपस्या की थी। बाल्यकाल से ही उन्होंने हिमालय पर्वत और गंगा तट पर तप करना शुरू कर दिया। इस दौरान वे केवल सूखे पत्तों का सेवन करती थीं। एक समय उनके पिता ने भगवान विष्णु के साथ विवाह का विचार किया, लेकिन जब यह बात पार्वती को पता चली तो उनकी सखी ने उन्हें वन जाने की सलाह दी। वहाँ उन्होंने रेत से शिवलिंग बनाकर भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए और माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यही कथा हरतालिका तीज के महत्व को और भी गहरा करती है।

हरतालिका तीज का आध्यात्मिक महत्व

यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। सुहागिन महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम और मजबूती लाने वाला माना जाता है। अविवाहित कन्याओं के लिए यह व्रत योग्य वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। महिलाएं इस अवसर पर सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण करती हैं, संपूर्ण श्रृंगार करती हैं और लोकगीतों के माध्यम से उल्लास प्रकट करती हैं। कई जगहों पर महिलाएं झूला झूलने और समूह में भजन-कीर्तन करने की परंपरा भी निभाती हैं।

‘हरतालिका’ नाम की उत्पत्ति

‘हरतालिका’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘हर’ का अर्थ है – हरण करना और ‘तालिका’ का अर्थ है – सखी। मान्यता है कि जब पार्वतीजी के पिता ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने का निश्चय किया, तब उनकी सखी ने उन्हें घर से ‘हरण’ कर जंगल में पहुंचाया और शिवजी की तपस्या के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इस व्रत को हरतालिका तीज कहा जाता है।

पूजा विधि

इस दिन पूजा से पहले मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। फिर एक साफ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उन मूर्तियों को स्थापित किया जाता है। इसके बाद मूर्तियों को नए वस्त्र पहनाकर उनका तिलक किया जाता है। शिवजी को बेलपत्र, माता पार्वती को सोलह श्रृंगार और गणेश जी को दूर्वा अर्पित की जाती है। पूजा में फल, मिठाई, पान, सुपारी और नारियल का भोग लगाया जाता है। गणेश जी को मोदक अर्पित करने के बाद दीप और धूप जलाकर हरतालिका तीज की कथा का पाठ किया जाता है। अंत में आरती कर सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है और दान-पुण्य किया जाता है।

हरतालिका तीज के शुभ मुहूर्त

इस वर्ष हरतालिका तीज के लिए कई विशेष मुहूर्त माने गए हैं। पहला ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:27 से 5:12 तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त पूर्वाह्न 11:57 से 12:48 बजे तक है। वहीं विजय मुहूर्त दोपहर 2:31 से 3:23 बजे तक रहेगा। इन मुहूर्तों में पूजा-अर्चना करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।