जो भारत को देता है चुनौती, उसे चटा देते है धुल– रक्षामंत्री राजनाथ सिंह

‘रण संवाद-2025’ का आज दूसरा दिन है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसमें अपना संबोधन दिया। यहां आयोजित कार्यक्रम में तीनों सेनाओं के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ प्रसिद्ध रक्षा विशेषज्ञों, रक्षा उद्योग के प्रमुखों और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पेशेवर शामिल हुए।

हम युद्ध का आमंत्रण नहीं देते
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत कभी भी युद्ध को आमंत्रित करने वाला देश नहीं रहा। हमने कभी भी किसी के खिलाफ आक्रामकता शुरू नहीं की है। अभी के समय में जियो पॉलिटिक्स वास्तविकता काफी अलग है। भले ही हमारे मन में कोई आक्रामक इरादा नहीं है। लेकिन अगर कोई हमें चुनौती देता है, तो यह जरूरी हो जाता है कि हम मजबूती से जवाब दें। ऐसा करने के लिए, हमें अपनी रक्षा तैयारियों को लगातार बढ़ाना होगा। यही कारण है कि प्रशिक्षण, तकनीकी प्रगति और भागीदारों के साथ निरंतर संवाद हमारे लिए बहुत जरूरी है।

महाभारत काल से चलता रहा है रण संवाद
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रण-संवाद का ऐतिहासिक आधार है, यह मुझे हमारे इतिहास की कई घटनाओं की याद दिलाता है, जो दर्शाती हैं कि सभ्यतागत युद्धों में ‘रण’ और ‘संवाद’ एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारी संस्कृति में, संवाद युद्ध से अलग नहीं है। यह युद्ध से पहले होता है, युद्ध के दौरान होता है, और युद्ध के बाद भी जारी रहता है। महाभारत का उदाहरण लें, युद्ध को रोकने के लिए भगवान कृष्ण शांति के दूत के रूप में गए। उन्होंने संवाद के जरिए युद्ध को टाले जाने की कोशिश की।

रण संवाद है शब्द में है रोचकता
राजनाथ सिंह ने कहा कि कार्यक्रम का शीर्षक, रण संवाद, मुझे काफी रोचक लगा। नाम अपने आप में विचार करने और चिंतन करने का विषय है। एक ओर, ‘रण’ युद्ध और संघर्ष की छवि को उजागर करता है। वहीं दूसरी ओर, ‘संवाद’, चर्चा और सुलह की ओर संकेत करता है। पहली नजर में, दोनों शब्द विरोधाभासी लगते हैं। जहां युद्ध है, वहां संवाद कैसे हो सकता है, और जहां संवाद हो रहा है, वहां युद्ध कैसे हो सकता है? लेकिन अगर आप गहराई से देखें, तो यह नाम हमारे समय की सबसे प्रासंगिक सच्चाइयों में से एक को दर्शाता है।

हाईटेक होगे अब युद्ध
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भविष्य के युद्ध केवल हथियारों से लड़ाई नहीं होगी। वे प्रौद्योगिकी, बुद्धिमत्ता, अर्थव्यवस्था और कूटनीति का संयुक्त खेल होंगे। आने वाले समय में, जो राष्ट्र प्रौद्योगिकी, रणनीति और अनुकूलन क्षमता के त्रिकोण में महारत हासिल करेगा, वही सच्ची वैश्विक शक्ति के रूप में उभरेगा। सीधे शब्दों में कहें तो यह इतिहास से सीखने और नया इतिहास लिखने का समय है, यह भविष्य का अनुमान लगाने और उसे आकार देने का समय है।

जमीन से अंतरिक्ष तक होगे युद्ध
21वीं सदी में आधुनिक युद्ध अब जमीन, समुद्र और हवा तक ही सीमित नहीं हैं, अब ये आउटर स्पेस और साइबर स्पेस तक भी फैल गए हैं। उपग्रह प्रणाली, एंटी-सैटेलाइट हथियार और अंतरिक्ष कमान केंद्र शक्ति के नए साधन हैं। इसलिए, आज हमें न केवल रक्षात्मक तैयारी की आवश्यकता है, बल्कि एक सक्रिय रणनीति की भी आवश्यकता है।

एंटी सैटेलाइट हथियार भी होंगे अहम
आगामी युद्ध मैदान के बजाय आसमान में लड़ा जाएगा। यही वजह है कि सेना अब एआइ के साथ रोबोटिक्स, आटोनामस ड्रोन सिस्टम व मशीनरी के इस्तेमाल पर जोर दे रही है। सैन्य क्षमता को मजबूत बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व मशीन लर्निंग अहम होगा और एआइ के माध्यम से भविष्य की स्थितियों का विश्लेषण भी किया जा सकेगा।ये बातें महू में आयोजित ‘रण संवाद‘ में युद्ध को प्रभावित करने वाली नई तकनीकों की पहचान’ विषय चर्चा करते हुए एयर मार्शल तेजिंदर सिंह ने कही। उन्होंने वर्तमान व भविष्य में उपयोग होने वाली तकनीकी व उससे बने हथियारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि क्वांटम तकनीक बहुत हानिकारक भी हो सकती है।

एआई की मदद से ड्रोन खुद ही टारगेट को खोजेगे
रण संवाद में नौसेना के वाइस एडमिरल तरुण सोबती ने युद्ध में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख हथियार व तकनीक के बारे में बताया। इसमें लंबी दूरी के एरियल वेक्टर, कम लागत में उपयोग होने वाले कमर्शियल क्वाडकोप्टर, स्पेस टेक्निकल एनैबलर में सैटेलाइट रियल टाइम विजिबिलिटी, रियल टाइम सिक्योर कम्युनिकेशन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि एआई के माध्यम से खुद टारगेट खोजकर हमला करने वाले ड्रोन भी तैयार हो चुके हैं। इलेक्ट्रानिक वारफेयर में नेटवर्क को जाम करने के साथ दुश्मन की मिसाइल को निशाने से भटकाया जा सकता है। साइबर वारफेयर और कम लागत वाले ड्रोन से मुश्किल जगह पर सटीक हमला कर दुश्मन को बड़ी क्षति पहुंचाई जा सकती है।