भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी का पर्व बड़े ही हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इसी तिथि को राधा रानी का प्राकट्य हुआ था और तभी से इस दिन को राधा जन्मोत्सव के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है। बरसाना, जो राधा रानी की नगरी मानी जाती है, वहां पर इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना और उत्सव का आयोजन किया जाता है। जिस तरह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे भक्तिभाव से मनाया जाता है, उसी प्रकार राधा अष्टमी का उत्सव भी पूरे उल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण की पूजा राधा रानी के बिना अधूरी मानी जाती है और उनकी आराधना से भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
इस वर्ष राधा अष्टमी का पावन पर्व 31 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि इसे भक्ति, प्रेम और श्रद्धा का पर्व माना जाता है। राधा अष्टमी पर मध्याह्न काल में पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। इस वर्ष पूजन का शुभ समय 11:05 बजे पूर्वाह्न से 01:38 बजे अपराह्न तक रहेगा। इस अवधि में कुल 2 घंटे 33 मिनट तक भक्तजन पूरे विधि-विधान से पूजन कर सकते हैं। माना जाता है कि इस समय में राधा रानी की उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौहार्द की वृद्धि होती है।
पूजन विधि
पूजा-विधि भी राधा अष्टमी पर बेहद खास मानी गई है। सबसे पहले एक स्वच्छ मंडप सजाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें। कलश पर तांबे का पात्र रखकर उस पर राधा रानी की सुशोभित प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके बाद भक्तजन षोडशोपचार विधि से पूजन करते हैं। फूल, तुलसी, धूप, दीपक, अक्षत और मिठाई आदि अर्पित करके राधा रानी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस अवसर पर उपवास रखना भी अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। भक्त चाहें तो पूरे दिन निर्जला उपवास कर सकते हैं या फिर केवल एक समय भोजन कर सकते हैं। पूजन के पश्चात अगले दिन सुहागिन महिलाओं और ब्राह्मणों को भोजन करवाना और उन्हें दक्षिणा प्रदान करना शुभ माना गया है।
पूजन सामग्री
पूजन सामग्री में राधा-कृष्ण की प्रतिमा या चित्र, राधा रानी की पोशाक, पंचामृत, सिंदूर, कुमकुम, हल्दी, फूल, तुलसी दल, दीपक, घी या तेल, फल, खीर, मिठाई, पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि शामिल होने चाहिए। विशेषकर सात्विक भोजन और दूध से बनी मिठाइयां जैसे माखन-मिश्री, खीर और मालपुआ का भोग राधा रानी को विशेष प्रिय है। भक्तों को चाहिए कि इस दिन इन नैवेद्यों को अर्पित करें।
व्रत का महत्व
व्रत का महत्व राधा अष्टमी पर सबसे बड़ा माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से पापों का नाश होता है और विवाहित महिलाओं को संतान सुख और अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राधा रानी की आराधना करने वाले भक्तों पर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर भक्त “ॐ ह्रीं राधिकायै नमः” मंत्र का जप कर राधा रानी का ध्यान करते हैं, जिससे उनके जीवन में प्रेम, सौभाग्य और समृद्धि बनी रहती है।