मध्यप्रदेश की मोहन सरकार एक बार फिर बाजार से बड़ा कर्ज लेने की तैयारी कर रही है। इस बार 4 हजार करोड़ रुपए का कर्ज प्रस्तावित है, जिसे तीन हिस्सों में विभाजित किया जाएगा। इसमें 1500-1500 करोड़ रुपए के दो हिस्से और 1 हजार करोड़ रुपए का एक हिस्सा शामिल होगा। सरकार की योजना है कि इस कर्ज की राशि का उपयोग राज्य की प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं जैसे लाड़ली बहना योजना सहित अन्य विकास परियोजनाओं के भुगतान और संचालन में किया जाए।
पहले भी लिया था भारी भरकम कर्ज
यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने कर्ज का सहारा लिया हो। इससे पहले भी मोहन सरकार ने बाजार से 4800 करोड़ रुपए का कर्ज उठाया था। लगातार बड़े पैमाने पर कर्ज लेने की इस प्रक्रिया से साफ है कि राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ रहा है और सरकार को योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए बाहरी संसाधनों का सहारा लेना पड़ रहा है।
इस वित्त वर्ष में कर्ज का बढ़ता बोझ
वित्तीय वर्ष 2025-26 की शुरुआत से अब तक राज्य सरकार कई बार कर्ज ले चुकी है। इस वित्तीय वर्ष अकेले कुल कर्ज की राशि 31,900 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। ताज़ा कर्ज शामिल होने के बाद यह बोझ और अधिक बढ़ जाएगा। आंकड़ों के अनुसार, राज्य पर कुल बकाया कर्ज अब बढ़कर 4,53,640.27 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा।
मार्च 2025 की स्थिति
31 मार्च 2025 तक सरकार पर कुल 4,21,740.27 करोड़ रुपए का कर्ज दर्ज था। यानी, सिर्फ छह महीने में ही राज्य पर लगभग 32 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ चढ़ चुका है। यह स्थिति बताती है कि राजस्व स्रोतों के मुकाबले खर्च अधिक होने की वजह से सरकार बार-बार उधारी लेने को मजबूर है।
सरकार का तर्क और राजस्व स्थिति
सरकार का कहना है कि वह लोन लेने के मामले में पूरी तरह से निर्धारित सीमा (Loan Limit) के अंदर ही है। वित्त विभाग के अधिकारियों का हवाला है कि पिछली वित्तीय वर्ष 2023-24 में राज्य सरकार राजस्व अधिशेष में थी। उस वर्ष सरकार की कुल आमदनी 2,34,026.05 करोड़ रुपए रही थी, जबकि खर्च 2,21,538.27 करोड़ रुपए हुआ था। यानी 12,487.78 करोड़ रुपए का अधिशेष बचा था। सरकार इसी आंकड़े का उदाहरण देते हुए कहती है कि वित्तीय प्रबंधन मजबूत है और कर्ज केवल योजनाओं की समय पर फंडिंग सुनिश्चित करने के लिए लिया जा रहा है।