आज के दौर में युद्ध केवल टैंकों, तोपों और बड़ी फौजों के बल पर नहीं जीते जाते। अब असली लड़ाई उन देशों की है जो कम लागत में तेज़ी से आधुनिक तकनीकें विकसित कर सकते हैं। यही वजह है कि भारत भी अपनी रणनीति बदल रहा है और स्वदेशी हथियारों के उत्पादन पर ज़ोर दे रहा है।
सेना प्रमुख का दृष्टिकोण
ET की रिपोर्ट के अनुसार, सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने हाल ही में कहा कि युद्ध में जीत हथियारों की गिनती से नहीं, बल्कि लागत और तकनीक के बीच संतुलन से तय होती है। उनका मानना है कि अगर किसी देश के पास कम कीमत पर बने और तेज़ी से अपग्रेड किए जा सकने वाले हथियार मौजूद हों, तो वह किसी भी शक्तिशाली दुश्मन का मुकाबला कर सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर का सबूत
भारत की स्वदेशी शक्ति का सबसे बड़ा प्रमाण हालिया ऑपरेशन “सिंदूर” में दिखा। इस मिशन में भारतीय सेना ने आकाश मिसाइल, ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल और D4 एंटी-ड्रोन सिस्टम जैसे स्वदेशी हथियारों का इस्तेमाल किया। इन हथियारों ने न केवल दुश्मन के ठिकानों को सटीकता से निशाना बनाया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि भारत अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो चुका है।
लागत में राहत: तेजस और मिसाइलें
लड़ाकू विमानों की बात करें तो स्वदेशी तेजस Mk1A एक बड़ा बदलाव ला रहा है। एक तेजस विमान की लागत लगभग 7.4 करोड़ डॉलर है, जबकि फ्रांस से खरीदे गए राफेल विमानों की कीमत करीब 28 करोड़ डॉलर तक पहुंचती है। यानी तेजस से भारत चार गुना कम खर्च में अपने स्क्वाड्रन तैयार कर पा रहा है।
इसी तरह आकाश मिसाइल की कीमत मात्र 5 लाख डॉलर है, जबकि अमेरिकी पैट्रियट मिसाइल की लागत करीब 40 लाख डॉलर तक होती है। यहां तक कि आकाश सिस्टम की पूरी रेजिमेंट भी विदेशी प्रणालियों की तुलना में कई गुना सस्ती है।
तोप और रॉकेट सिस्टम की सफलता
स्वदेशी पिनाका रॉकेट लॉन्चर भी भारत की लागत बचत और ताकत का अहम हिस्सा है। इसकी कीमत करीब 2.3 करोड़ रुपये है, जबकि अमेरिका का HIMARS लॉन्चर लगभग 40 करोड़ रुपये तक का है। यानी भारत अपने हथियार खुद बनाकर युद्धक्षेत्र में कम लागत में बेहतर क्षमता हासिल कर रहा है।
भारतीय वायुसेना की नई उड़ान
मिग-21 को हटाने के बाद वायुसेना की शक्ति थोड़ी कमजोर ज़रूर हुई थी, लेकिन अब तेजस Mk1A इस कमी को पूरा करने के लिए तैयार है। HAL और निजी कंपनियां मिलकर 2027 तक हर साल 30 विमान बनाने की योजना पर काम कर रही हैं। इससे भारतीय वायुसेना को नई गति और शक्ति मिलेगी।
समुद्री ताकत का प्रतीक INS विक्रांत
भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत इस आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी मिसाल है। 23,000 करोड़ रुपये की लागत से बने इस पोत ने भारतीय नौसेना को नई मजबूती दी है। इसका निर्माण पूरी तरह देश के शिपयार्ड में हुआ है, जिससे यह साबित होता है कि भारत अब समुद्री ताकत में भी आत्मनिर्भर है।
रक्षा निर्यात में ऐतिहासिक बढ़त
स्वदेशी हथियारों का असर केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था को भी मज़बूत कर रहा है। 2024-25 में भारत ने 23,622 करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादों का निर्यात किया। आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा और बढ़ेगा, क्योंकि रक्षा मंत्रालय ने 2029 तक 50,000 करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य रखा है।