आज से शारदीय नवरात्र का पावन पर्व आरंभ हो गया है। नवरात्र का पहला दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री को समर्पित है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और नवदुर्गा का प्रथम रूप मानी जाती हैं। इस दिन घटस्थापना और कलश पूजन के साथ नौ दिवसीय महापर्व की शुरुआत होती है। मान्यता है कि नवरात्र का व्रत और विधिवत पूजा करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और साधक के जीवन में शुभता और समृद्धि आती है।
पूजा विधि और घटस्थापना का महत्व
नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना विशेष रूप से की जाती है। इसके लिए पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाया जाता है। मिट्टी के पात्र में जौ बोकर उस पर कलश स्थापित किया जाता है। कलश में गंगाजल भरकर उसमें सुपारी, सिक्के, दूर्वा और अक्षत डालते हैं। कलश के मुख पर आम के पत्ते सजाकर नारियल रखा जाता है। इसे जौ के पात्र पर स्थापित करने के बाद देवी का आह्वान किया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों तक साधक देवी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना और आरती करते हैं। कई लोग इस पूरे समय उपवास रखकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, 22 सितंबर 2025 को घटस्थापना का शुभ समय सुबह 06:09 से 08:06 बजे तक रहेगा। इसके अलावा, यदि कोई साधक इस समय पूजा न कर पाए तो अभिजीत मुहूर्त 11:49 से 12:38 बजे के बीच भी घटस्थापना कर सकते हैं। शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करने से साधक को मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री की पूजा में अर्पित की जाने वाली वस्तुएं
मां शैलपुत्री को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है। इस कारण भक्तों को इस दिन सफेद वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। पूजा में देवी को रोली, अक्षत, सिंदूर, धूप, दीप और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही मां को सफेद फूल या लाल गुड़हल का फूल चढ़ाना विशेष फलदायी माना जाता है। देवी को सच्चे मन से अर्पित की गई वस्तुएं भक्तों के जीवन में सुख-शांति लाने वाली होती हैं।
मां शैलपुत्री का प्रिय भोग
भोग के रूप में मां शैलपुत्री को गाय के घी से बनी वस्तुएं विशेष रूप से प्रिय हैं। भक्तजन उन्हें घी से बने हलवे, लड्डू या अन्य मिठाई का भोग लगाते हैं। इसके अलावा कई क्षेत्रों में सफेद पेड़े या सफेद बर्फी अर्पित करने की परंपरा भी है। यह माना जाता है कि ऐसा करने से मां शैलपुत्री की कृपा से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व
मां शैलपुत्री की आराधना करने से साधक को स्थिरता, धैर्य और शक्ति प्राप्त होती है। नवरात्र का यह पहला दिन आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की ओर कदम बढ़ाने का संदेश देता है। यह पर्व न केवल देवी की पूजा का अवसर है, बल्कि आत्मचिंतन और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ने का भी समय है। जो साधक श्रद्धा और विश्वास के साथ मां शैलपुत्री की आराधना करते हैं, उन्हें जीवन में सफलता, स्वास्थ्य और शांति प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री के पूजन मंत्र
भक्त इस दिन मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप करते हैं—
• “सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।“
• “या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।“
इन मंत्रों के उच्चारण से मन शुद्ध होता है और भक्त को मां शैलपुत्री का आशीर्वाद प्राप्त होता है।