हिंदू धर्म में नवरात्रि को बेहद पावन पर्व माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन नौ दिनों में मां दुर्गा अपने भक्तों के बीच पृथ्वी पर आती हैं और उनके विभिन्न स्वरूपों की आराधना की जाती है। पूरे देशभर में इस पर्व को बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। जगह-जगह देवी दुर्गा के भव्य पंडाल सजाए जाते हैं और भक्तजन उनके दर्शन व पूजन के लिए जुटते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले का जमुनिया गांव इस मायने में बिल्कुल अलग है, क्योंकि यहां नवरात्रि में मां दुर्गा नहीं, बल्कि रावण की पूजा की जाती है।
जमुनिया गांव में रावण के पंडाल की सजावट
छिंदवाड़ा जिले के जमुनिया गांव में नवरात्रि का दृश्य बाकी जगहों से बिल्कुल अलग दिखाई देता है। यहां आदिवासी समुदाय की ओर से विशेष रूप से रावण का पंडाल सजाया जाता है। नौ दिनों तक रावण की मूर्ति स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है, और आज भी इसे पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है।
रावण को पूर्वज और भगवान शिव का भक्त मानते हैं
गांव के आदिवासी समाज का मानना है कि वे जिस रावण की पूजा करते हैं, वह केवल रामायण का खलनायक नहीं है, बल्कि उनके लिए एक पूजनीय पूर्वज और भगवान शिव का परम भक्त है। उनका विश्वास है कि भगवान शिव हमेशा से उनके देवता रहे हैं और रावण शिवभक्त होने के कारण उनके लिए सम्माननीय है। यही वजह है कि नवरात्रि में जब अन्य स्थानों पर मां दुर्गा की आराधना की जाती है, तब जमुनिया गांव में रावण की प्रतिमा के सामने दीप जलाए जाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
धार्मिक सहिष्णुता और विशेष मान्यता
आदिवासी समुदाय यह भी कहता है कि वे सभी धर्मों और मान्यताओं का सम्मान करते हैं। इसीलिए गांव में पहले मां दुर्गा की पूजा होती है और उसके बाद रावण की पूजा की जाती है। उनका कहना है कि उनकी परंपरा सालों पुरानी है, जिसे वे आज भी पूरी निष्ठा के साथ निभा रहे हैं। उनके अनुसार, यह न केवल उनके पूर्वजों के प्रति आस्था का प्रतीक है बल्कि भगवान शिव के भक्त रावण को सम्मान देने का माध्यम भी है।
रावण दहन का विरोध
जमुनिया गांव के आदिवासी रावण को पूजनीय मानते हैं, इसीलिए दशहरे के दिन रावण दहन का आयोजन यहां नहीं किया जाता। बल्कि, वे इसके सख्त विरोधी हैं। उनका कहना है कि रावण दहन से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। यही कारण है कि उन्होंने सरकार से भी अपील की है कि रावण दहन जैसी परंपरा पर रोक लगाई जाए। यहां दशहरे पर रावण की प्रतिमा को जलाने के बजाय उसकी पूजा-अर्चना कर सम्मानपूर्वक विदाई दी जाती है।