महालक्ष्मी समृधि कलश की आस में उमड़े भक्त, नाम बड़े दर्शन खोटे ने कर दिया हैरान!

इंदौर शहर में विश्व का सबसे बड़ा नवरात्रि पंडाल बनाया गया है। जिसमें नवरात्रि समृधि कलश यज्ञ पूजा महोत्सव शुरू हो गया है। यहां भव्‍यता तो देखने वाली थी लेकिन जैसे ही यहां यज्ञ में मां पद्मवती का आह्वान करते हुए घटकुंभ की स्थापना की गई इंद्रदेव इतने प्रसन्न हुए की झूम कर बरस पड़े। खैर नवरात्रि का प्रथम दिन होने से यहां श्रद्दालूओं की संख्या सीमित ही थी, यहां पर बारिश ने व्यवस्थाओं को बिगाड़ दिया यहां लगे पंडाल में से भी पानी रिसने लगा। 30 एकड़ की जमीन पर चिकनी काली मिट्टी होने से यहां आने वाले श्रद्दालू कीचड़ पानी में परेशान होते रहे। खैर इतनी परेशानी झेलने के बाद भी भक्तो ने मां की आराधना में पंडाल में ही रह कर मां की आराधना करने का दृढ निश्चय कर लिया था। जिसके चलते यज्ञ शाला में भी पानी गिरने के बाद भी भक्त हवन में बैठने का पुण्य प्राप्त करते रहे। यह जो भक्त इतनी परेशान झेल कर जिस तरह से यज्ञशाला में बैठे थे ऐसा प्रतित हो रहा था जैसे मां को पाने के लिए तपस्या कर रहे थे।

यहां आए भक्त इस पंडाल में बनी यज्ञशाला में एक करोड़ मंत्रों का जाप के साक्षी बने. इस कार्यक्रम का आयोजन कृष्णगिरि पीठाधीश्वर पूज्यपाद जगतगुरु श्री श्री 1008 आचार्य वसंत विजयानंद गिरिजी महाराज कर रहे है जिन पर मां पद्मावती की असीम कृपा है। बताया जा रहा है कि उन्हे कई तरह की सिद्धियां भी प्राप्त है। लेकिन यहां आयोजन की व्यवस्था करे वाले लोगों ने इस बात पर गौर नहीं फरमाया कि बारिश के आने पर यहां आने वाले हजारों श्रद्दालूओं को किस तरह से पानी से बचाया जाएंगा। यहां पर वाट्सप्रूफ डोम बनाए जाने थे लेकिन जिस तरह से पानी इन पंडाल में आया उसने यहां पर बने 300 करोड़ के पंडाल की पोल खोल दी। यहां पर अव्यवस्थाओं का अंबार देखा गया। यहां पर बारिश के दौरान पानी से बचने के लिए स्थान तलाशते नजर आए।

स्टील के धामे लगा कर रोका पानी
यहां पर बारिश के दौरान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे में बारिश की संभावनाएं तो प्रबल ही थी। सिद्धिया प्राप्त जगतगुरू जी को भी इस बात का अंदाजा तो था ही कि बारिश आना शूरू हो गई तो यज्ञ कैसे किया जाएंगा लेकिन इन तमाम दूरदृश्टि को नजर अंदाज करके यज्ञशाला का निर्माण प्राचीन काल की यज्ञ शाला जैसा किया गया। जिस पर वाटरप्रूफिंग करना थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया था। यज्ञ शाला के द्वार की तरफ वाले हिस्सों पर तेजी से पानी नीचे गिर रहा था और यज्ञ में बैठे भक्त परेशान हो रहे थे। वह जिस कारपेड पर भी बैठे थे वह भी गीला हो रहा था जिस पर बैठना मुश्किल ना हो जाए इसलिए यहां पर स्टील के धामें लगा कर यहां पर टपकने वाले पानी को रोकने का प्रयास किया।

थर्माकोल की दीवार गिरी और बही
बताया जा रहा था कि इस पंडाल की लागत करीब 300 करोड़ रुपए थी। जिसे जुलाई माह से अब तक चार राज्यों के 500 से ज्यादा कलाकारों ने मिलकर बनाया था. पंडाल का द्वार ही करीब 425 फीट चौड़ा है जो इसकी भव्यता दर्शाता है. लेकिन जब इंद्रे देव प्रसन्न हो कर बरसे तो इस पंडाल में से पानी इस तरह गिरा कि यहां पर आने वाले भक्त भी पानी से भीगने से स्वयं को नहीं बचा पाएं। इंट्री पंडाल से बने एक द्वार पर से केदार धाम तक पहुंचते- पहुंचेते ही भीग गए।

सुलभ शौचालय तक पहुंचना हुआ मुश्किल
यहां पर 30 एकड़ के एक हिस्से में बने सुलभ शौचालय तक पहुंचना भी एक चुनौती बन गया। यहां पर वर्षो पहले बनने वाली चद्दरों के शौचालय बने हुए है।  जहां तक पहुंचने के लिए भक्तो कों कीचड़ से गुजरना पड़ रहा था। महिलाओं के लिए इसे उपयोग करना बहुुत परेशानी भरा है। जिसके चलते कई भक्त स्वच्छ इंदौर की धज्जियां तक उड़ाते हुए दिखे। सुत्रों का कहना है कि इस आयोजन में व्यवस्थाओं को संभालने के लिए कई नेता, विधायक, पार्षद का दल-बल लगा था लेकिन पुरा इंदौर नगर निगम और राऊ जनपद पंचायत यहां पर चलित शौचालय नहीं लगा पाई।  ना ही शौचालयों में पर्याप्त पानी की व्यवस्था करा पाई।

सिर्फ समृद्ध लोगों के लिए ही था आयोजन?
इस आयोजन में देश- विदेश से भक्तों के आने का दावां किया गया था। यदि जगतगुरू के शिष्य इस आयोजन में शामिल होने आए है तो यह संभव है कि देश- विदेश से आने वाले भक्त इंदौर शहर की होटलोंं में ठहर कर इस आयोजन में शामिल होगे। लेकिन देश के कई राज्यो से आने वाले ऐसे भक्त जो परेशानी और दुख दुर करने की आस ले कर मां महालक्ष्मी का कलश पा कर अपने सुखद जीवन की आस लगा कर इस आयोजन में शामिल होने आए उन्हें यहां पर निराशा ही मिली। इन भक्तो के लिए यहां 300 करोड़ के पंडाल में रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी। ना ही उनके पहुंचने पर किसी भी समय भोजन की व्यवस्था। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह आयोजन सिर्फ समृद्ध लोगों के लिए ही था जो आयोजन स्थल के पास या बड़ी होटलों में कमरें लेकर आ सकते है।  यह यहां की एक बहुत बड़ी अव्यवस्था थी।

भोजन के लिए भी भटकते दिखे भक्त
यहां पर दोपहर बाद आने वाले भक्तों के लिए भोजन की कोई  व्यवस्था नहीं थी। ना ही कोई ऐसी व्यवस्था थी कि जो लोग दुसरे राज्यों से आ रहे है उन्हें अपनी यात्रा का टिकट दिखाने पर कोई भोजन की व्यवस्था थी। जो दोपहर बाद यहां पहुंच रहे थे उन्हें शाम 7 बजे बाद भोजन मिलेगा यह कह कर भेज दिया गया। यहीं यहां काम करने वाले भी कई कर्मचारी भी भोजन बनाने वाले लोगों से बचा हुआ भोजन लेकर आ कर खा रहे थे लेकिन यहां आने वाले कई भक्त जो उम्र दराज थे भोजन की आस लगा कर आए लेकिन यहां भोजन का समय सुन कर जाते हुए नजर आए।