मध्यप्रदेश के इंदौर का शीतलामाता बाजार, जो लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम एकता और मेलजोल का प्रतीक माना जाता रहा है, इन दिनों गहरे विवाद में उलझ गया है। यहां भाजपा विधायक मालिनी गौड़ के बेटे और नगर उपाध्यक्ष एकलव्य सिंह गौड़ के बयान ने हलचल मचा दी है। उन्होंने हाल ही में बाजार के मुस्लिम कर्मचारियों को हटाने का अल्टीमेटम देकर माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया। उनका तर्क है कि बाजार में “लव जिहाद” जैसी गतिविधियों का खतरा है और इससे हिंदू महिलाओं की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। यह बयान सीधे तौर पर उस साझा सांस्कृतिक पहचान पर चोट करता है, जिसके लिए इंदौर की गंगा-जमुनी तहजीब जानी जाती है।
अल्टीमेटम और उसका असर
एकलव्य सिंह गौड़, जो हिंद रक्षक संगठन के संयोजक भी हैं, ने 25 अगस्त को व्यापारियों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में उन्होंने मुस्लिम कर्मचारियों पर महिलाओं से छेड़छाड़ और “लव जिहाद” जैसे संगठित अपराध में शामिल होने का आरोप लगाया। गौड़ का कहना था कि यह कोई संयोग नहीं बल्कि एक योजनाबद्ध आपराधिक गतिविधि है। उन्होंने साफ कहा कि यदि व्यापारी 25 सितंबर तक मुस्लिम कर्मचारियों को नहीं हटाते, तो वे “अपने तरीके से” कदम उठाएंगे। इस चेतावनी का असर बाजार पर साफ दिखाई दिया और बड़ी संख्या में दुकानदारों ने दबाव में मुस्लिम सेल्समैन को नौकरी से निकाल दिया।
व्यापारियों की मजबूरी और दबाव
शीतलामाता बाजार में लगभग 400 दुकानें हैं, जिनमें करीब 70 से ज्यादा मुस्लिम कर्मचारी काम कर रहे थे। एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि राजनीतिक और सामाजिक दबाव के चलते अधिकांश कर्मचारियों को हटाना पड़ा। व्यापारी पप्पू महेश्वरी बताते हैं कि यह फैसला किसी की इच्छा से नहीं बल्कि मजबूरी में लिया गया है। उनका मानना है कि इससे न केवल व्यापार को नुकसान हुआ है, बल्कि वर्षों से बनी सांप्रदायिक एकता भी टूट रही है। यह कदम मजबूरी में उठाया गया निर्णय माना जा रहा है, जो बाजार की पहचान को प्रभावित कर रहा है।
साझेदारी और भाईचारे पर असर
यह विवाद केवल नौकरी गंवाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि लंबे समय से चल रही हिंदू-मुस्लिम साझेदारी पर भी सीधा प्रहार करता है। बलवंत सिंह राठौड़ जैसे व्यापारी, जिनकी दुकान एक मुस्लिम साझेदार के साथ थी, बताते हैं कि अब उन्हें दुकान खाली करनी पड़ रही है। इसी तरह, मुस्लिम दुकानदार मोहम्मद गुलजार कहते हैं कि उन्होंने 30-35 साल तक शांति से काम किया, लेकिन आज केवल अपनी धार्मिक पहचान के कारण बाहर किया जा रहा है। यह स्थिति इंदौर के उस भाईचारे को कमजोर कर रही है, जो दशकों से इस शहर की सबसे बड़ी ताकत रहा है।
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खतरा
इंदौर हमेशा से एक ऐसा शहर रहा है जहां अलग-अलग धर्म और संस्कृतियाँ एक साथ रहती आई हैं। लेकिन मौजूदा हालात यह संकेत दे रहे हैं कि समाज अब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रहा है। कांग्रेस नेता चिंटू चौकसे ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए कहा कि यह “इंदौर की संस्कृति और साझा विरासत को तोड़ने की साजिश” है। उनका कहना है कि यह कदम सिर्फ एक समुदाय को निशाना बनाने का प्रयास है। दूसरी ओर, एकलव्य गौड़ का कहना है कि वे धर्म विशेष के खिलाफ नहीं बल्कि “जिहादी मानसिकता” के खिलाफ हैं।
प्रशासन की चुप्पी और कानूनी सवाल
सबसे बड़ी चिंता प्रशासन की खामोशी को लेकर उठ रही है। सवाल यह है कि क्या किसी व्यक्ति या संगठन को अधिकार है कि वह खुलेआम धार्मिक पहचान के आधार पर किसी को नौकरी से निकालने की अपील करे? संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की अपील IPC की धारा 153A के तहत सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की श्रेणी में आ सकती है। ऐसे में प्रशासन की निष्क्रियता और चुप्पी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
‘लव जिहाद’ की बहस – तथ्य या भ्रम?
‘लव जिहाद’ शब्द भारतीय कानून में परिभाषित नहीं है। हालांकि कई राज्यों ने इससे जुड़े कानून बनाए हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला है जिससे इसे संगठित अपराध सिद्ध किया जा सके। कई अदालतें और राष्ट्रीय महिला आयोग तक यह स्पष्ट कर चुके हैं कि हर अंतरधार्मिक विवाह या प्रेम संबंध को “लव जिहाद” कहना अनुचित है। ऐसे में इस मुद्दे का राजनीतिक और सामाजिक इस्तेमाल ज्यादा दिखाई देता है, जो अंततः समाज को विभाजित करने का काम करता है।