अमेरिका ने भारत पर ट्रेरिफ बढ़ा दिया है इसको लेकर भाजपा के राजनैतिक गलियारों में ही नहीं बल्कि घर-घर तक पहुंचने वाले संघ के प्रमुख ने देशवासियों का आह्वान किया है कि अमेरिका सहित विदेशी वस्तुओं पर देशवासियों को निर्भरता कम करना चाहिए। इसके बजाय भारत को स्वदेशी चीजे अपनाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। यदि हमने स्वदेशी वस्तुओं पर अपनी निर्भरता बढ़ा दी तो हमें दुसरे देशों पर अपनी निर्भरता कम करने में आसानी होगी। स्वदेशी अपनाने के कदम से पुरे देश में समृद्धि भी आएंगी। ऐसे ही सदेश के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आयात पर निर्भरता मजबूरी नहीं बननी चाहिए।
संघ शताब्दी वर्ष पर दिया संदेश
भागवत नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में विजयादशमी के अवसर पर अपना संबोधन दे रहे थे। संघ अपनी स्थापना की शताब्दी भी मना रहा है। इस दौरान मोहन भागवत ने कई अहम बातें कहीं।
स्वदेशी का विकल्प नहीं
स्वदेशी उत्पादन का कोई विकल्प नहीं है। अमेरिका की टैरिफ नीति से हर कोई प्रभावित है इसलिए आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना होगा। नेपाल में हुई अशांति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पड़ोस में अशांति अच्छा संकेत नहीं है। भारत के खिलाफ अमेरिका के टैरिफ आक्रामक रुख के प्रमुख मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि आयात पर निर्भरता मजबूरी नहीं बननी चाहिए और स्वदेशी या स्वदेशी उत्पादन का कोई विकल्प नहीं है।
नेपाल हिंसा का भी किया जिक्र
आरएसएस प्रमुख ने नेपाल में हाल ही में हुई अशांति का भी जिक्र किया, जहां एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन के परिणामस्वरूप सत्ता परिवर्तन हुआ। उन्होंने इस हिमालयी देश में जेन-जेड के विरोध प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा, “पड़ोस में अशांति कोई अच्छा संकेत नहीं है। श्रीलंका, बांग्लादेश और हाल ही में नेपाल में जनाक्रोश के हिंसक विस्फोट के कारण सत्ता परिवर्तन हमारे लिए चिंता का विषय है। भारत में ऐसी अशांति पैदा करने की चाह रखने वाली ताकतें हमारे देश के अंदर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं।”
अराजकता विदेशी ताकतों को खेलने का मौंका देती है
उन्होंने कहा, “लोकतांत्रिक आंदोलन बदलाव लाते हैं; हिंसक विद्रोह नहीं। वे उथल-पुथल मचाते हैं, लेकिन यथास्थिति बनी रहती है। इतिहास देखिए। कोई भी क्रांति अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाई। फ्रांस अपने राजा के खिलाफ उठा और नेपोलियन सम्राट बना। कई तथाकथित समाजवादी आंदोलन हुए और ये सभी समाजवादी देश अब पूंजीवादी हो गए हैं। अराजकता विदेशी ताकतों को अपना खेल खेलने का मौका देती है।”
मतभेदों को स्वीकार करना चाहिए
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विविधता भारत की परंपरा है और हमें अपने मतभेदों को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने कहा, “कुछ मतभेद कलह का कारण बन सकते हैं। मतभेदों को कानून के दायरे में व्यक्त किया जाना चाहिए। समुदायों को उकसाना अस्वीकार्य है। प्रशासन को निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए, लेकिन युवाओं को भी सतर्क रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करना चाहिए। अराजकता के व्याकरण को रोकना होगा।” उन्होंने आगे कहा कि ‘हम’ बनाम ‘वे’ की मानसिकता अस्वीकार्य है