सरयू मेले में पूर्वांचल की लोक संस्कृति और स्वाद का संगम,
लोकगीतों और पारंपरिक व्यंजनों ने किया मन मोहित

इंदौर। मालवा की धरती पर शनिवार और रविवार का दिन पूर्वांचल की लोक-संस्कृति, संगीत और स्वाद से सराबोर रहा। शहर के पूर्वांचल एवं सरयूपारिण ब्राह्मण समाज द्वारा आयोजित “सरयू मेला” में ऐसा प्रतीत हुआ मानो अयोध्या की पावन सरयू नदी स्वयं इंदौर में अवतरित हो गई हो।

मेले की संगीतमय संध्या में सुप्रसिद्ध लोकगायिकाएं हेमा पांडे और करीना पांडे ने अपनी मधुर आवाज़ में ऐसे लोकगीत प्रस्तुत किए कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। बिहार और उत्तर प्रदेश की लोक परंपराओं से जुड़े सोहर, कजरी, और छठ गीतों की मनमोहक प्रस्तुतियों ने वातावरण को भावनाओं और भक्ति से भर दिया।
‘रोई-रोई कहे बझिनिया हो, सुनी हो दीनानाथ’, ‘केकर लाले-लाले अंचरा’, और ‘छठ माई के करब बरतिया भोरहि चार बजे’ जैसे लोकगीतों ने हर श्रोता के हृदय को स्पंदित कर दिया। ऐसा लगा मानो सरयू और गंगा के तटों से उठती स्वर-लहरियां इंदौर के आकाश में गूंज रही हों।

संगीत के साथ-साथ पूर्वांचल के स्वादिष्ट व्यंजनों का संगम भी मेले का विशेष आकर्षण रहा। लिट्टी-चोखा, खाजा, लोंगलता, बलिया की बड़ी-पूरी, ज्वार-बाजरे की रोटी, के साथ सुरती सुपारी और कलकतिया-बनारसी पान ने आगंतुकों के स्वाद को यादगार बना दिया। इस भव्य आयोजन का शुभारंभ प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, विधायक रमेश मेंदोला, एमआईसी मेंबर अश्विनी शुक्ला, और क्षेत्रीय पार्षद मनोज मिश्रा ने संयुक्त रूप से किया।

कार्यक्रम में पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान, म.प्र. के अध्यक्ष ठाकुर जगदीश सिंह, महासचिव के. के. झा, वरिष्ठ समाजसेवी अरुण मिश्रा, हरीश विजयवर्गीय सहित शहर के अनेक गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। सरयू मेला के दूसरे दिन शास्त्रार्थ का विषय था शादी में चार मैं चार फेरे होना चाहिए या सात जिसमें पंडित विनायक पांडे जी प्रेम शंकर शास्त्री जी के साथ लगभग 8 विद्वान जनों ने शास्त्रार्थ किया वही हमार दुल्हन कंपटीशन हुए दुल्हिजैसी तथा शाम को सुप्रसिद्ध भजन गायक गन्नू महाराज के द्वारा अवधी भाषा में भजन संध्या का आयोजन हुआ, साथ में सांची कहे तोहरे एवं से हमारे अंगना में आई बहार भोजी, करके इशारे बुलाई गई रे जैसे कई प्रसिद्ध भजन पर जनता कोझूमने मजबूर कर दिया जिसका आनंद देर रात तक लोगों ने लिया।