गोवर्धन असरानी का निधन, ‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं’ कहने वाले दिग्गज कलाकार ने कहा अलविदा

हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता और अपनी कॉमेडी टाइमिंग से दर्शकों के दिलों में जगह बनाने वाले गोवर्धन असरानी अब हमारे बीच नहीं रहे। 84 वर्ष की उम्र में असरानी का सोमवार दोपहर करीब 1 बजे निधन हो गया। उनके निधन की पुष्टि उनके लंबे समय से जुड़े मैनेजर बाबू भाई थिबा ने की। बताया जा रहा है कि असरानी पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। चार दिन तक इलाज चलने के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली।

दिवाली से कुछ घंटे पहले दी थीं शुभकामनाएं

सबसे भावुक कर देने वाली बात यह है कि उनके निधन से कुछ ही घंटे पहले असरानी के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से दिवाली की शुभकामनाएं दी गई थीं। फैंस उस पोस्ट पर अब श्रद्धांजलि संदेश दे रहे हैं। किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि शुभकामनाएं देने वाला यह मुस्कुराता चेहरा कुछ ही घंटों में हमेशा के लिए खामोश हो जाएगा।

अंतिम संस्कार में सिर्फ परिवार मौजूद

गोवर्धन असरानी का अंतिम संस्कार मुंबई के सांताक्रूज स्थित शांतिनगर श्मशान घाट में किया गया। उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार यह संस्कार बेहद सादगी से किया गया। असरानी नहीं चाहते थे कि उनकी मौत के बाद कोई शोर या तमाशा हो। उन्होंने अपनी पत्नी से पहले ही कह दिया था कि “मेरी मौत की खबर तब ही देना जब मेरा अंतिम संस्कार हो जाए”। इसीलिए उनके अंतिम संस्कार में सिर्फ 15–20 लोग, परिवार के सदस्य और करीबी मित्र ही मौजूद थे। फिल्म इंडस्ट्री से किसी को भी इसकी खबर नहीं दी गई, इसलिए कोई सेलेब्रिटी शामिल नहीं हो पाया।

350 से ज्यादा फिल्मों में बिखेरा जादू

गोवर्धन असरानी का फिल्मी करियर पांच दशक से भी लंबा रहा। उन्होंने 350 से ज्यादा फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा का जलवा दिखाया। उन्होंने न सिर्फ कॉमेडी, बल्कि सीरियस और निगेटिव किरदारों में भी बेहतरीन काम किया।
फिल्में जैसे ‘शोले’, ‘अभिमान’, ‘चुपके-चुपके’, ‘छोटी सी बात’, ‘खट्टा मीठा’, ‘भूल भुलैया’—हर एक में असरानी का अंदाज़ निराला था। उनका सबसे यादगार किरदार 1975 की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘शोले’ में देखा गया, जहां उन्होंने जेलर का किरदार निभाया था। उनका डायलॉग — “हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं” — आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे आइकॉनिक डायलॉग्स में गिना जाता है।

असरानी: हंसी का पर्याय

असरानी उन कलाकारों में से थे, जिन्होंने हर किरदार में हास्य और संवेदना का सुंदर मेल दिखाया। उनका चेहरा आते ही दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी। 70 और 80 के दशक में उन्होंने कॉमेडी को एक अलग पहचान दी। असरानी का कहना था कि “हास्य सबसे कठिन अभिनय होता है, क्योंकि लोगों को हंसाना आसान नहीं।”

‘शोले’ के जेलर किरदार की जीत की कहानी

एक पुराने इंटरव्यू में असरानी ने बताया था कि एक बार वे राजस्थान के कोटा के पास एक गांव में शूटिंग कर रहे थे। वहां काफी लोग उन्हें देखने आए थे। तभी एक चार साल की छोटी बच्ची उन्हें देखकर चिल्लाई — “असरानी जेलर!” असरानी ने कहा था — “मुझे उस दिन एहसास हुआ कि मेरा किरदार लोगों के दिलों में उतर गया है। जब एक बच्ची मुझे किरदार के नाम से पहचानती है, तो समझो किरदार अमर हो गया।”

एक युग का अंत

गोवर्धन असरानी के निधन के साथ हिंदी सिनेमा ने कॉमेडी का एक सुनहरा अध्याय खो दिया है। उन्होंने अपनी सादगी, विनम्रता और कलात्मक ईमानदारी से लाखों लोगों का दिल जीता। उनकी मुस्कान, उनका अंदाज़ और उनका संवाद — आने वाली पीढ़ियों तक याद किया जाएगा।