इंदौर में बढ़ा सियासी टकराव, महापौर के करीबी आयुष रावल ने थाने में निगमायुक्त के खिलाफ की नारेबाजी

इंदौर की राजनीति में शनिवार का दिन बेहद गर्म रहा। भंवरकुआं थाने में उस समय हंगामा मच गया जब महापौर के खास मित्र आयुष रावल ने थाना प्रभारी के केबिन में ही निगमायुक्त दिलीप यादव मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। यह घटना न केवल पुलिस और निगम प्रशासन को चौंकाने वाली थी, बल्कि शहर की राजनीति में नई हलचल भी पैदा कर गई।

थाने पर जुटे महापौर समर्थक, निगमकर्मियों के खिलाफ जमकर प्रदर्शन

बताया जा रहा है कि शनिवार रात भंवरकुआं थाने पर महापौर के समर्थकों की बड़ी भीड़ पहुंच गई थी। समर्थक निगमकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे। थाने परिसर में माहौल तनावपूर्ण हो गया और पुलिस को बीच-बचाव करना पड़ा। इस दौरान कई पार्षद और बीजेपी कार्यकर्ता भी थाने पर मौजूद थे। घटना इतनी अचानक हुई कि पुलिस अधिकारी भी स्थिति को संभालने में उलझ गए।

पहली बार खुलकर दिखे आयुष रावल, महापौर के ‘शैडो’ कहे जाने वाले मित्र ने बदला तेवर

आमतौर पर महापौर के साथ साये की तरह रहने वाले आयुष रावल को पहली बार इतनी मुखर भूमिका में देखा गया। लोग उन्हें महापौर के सबसे भरोसेमंद और नजदीकी सहयोगी के रूप में जानते हैं, लेकिन शनिवार को उन्होंने खुद थाने के अंदर निगमायुक्त के खिलाफ नारेबाजी कर सभी को हैरान कर दिया। राजनीतिक हलकों में अब यह चर्चा तेज है कि आयुष रावल के इस कदम के पीछे कोई बड़ा असंतोष या राजनीतिक संकेत छिपा है।

मामला पहुंचा भोपाल से लेकर दिल्ली तक, प्रशासन में मचा हड़कंप

भंवरकुआं थाने की यह पूरी घटना अब सिर्फ इंदौर तक सीमित नहीं रही। सूत्रों के अनुसार, मामला भोपाल और दिल्ली तक पहुंच गया है। सरकार के शीर्ष स्तर पर इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट मांगी गई है। इसी बीच खबर है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव भी आने वाले दिनों में इंदौर का दौरा करने वाले हैं, और इस दौरान इस मामले पर बातचीत की पूरी संभावना है। अधिकारियों और नेताओं के बीच की यह तनातनी अब एक राजनीतिक परीक्षा बन गई है।

अफसर बनाम नेता की लड़ाई में शहर की छवि पर पड़ रहा असर

इस टकराव का असर सिर्फ निगम दफ्तर या थाने तक सीमित नहीं है। जानकारों का कहना है कि अफसरों और नेताओं के बीच चल रही यह खींचतान अब शहर के कामकाज पर भी असर डालने लगी है। कई बड़े विकास कार्य ठप पड़े हैं और प्रशासनिक स्तर पर भी असमंजस का माहौल है। यदि स्थिति जल्द नहीं संभली, तो शहर की छवि और विकास दोनों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।

भाजपा संगठन बैकफुट पर, पार्षदों की नाराज़गी खुलकर आई सामने

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि भाजपा संगठन पूरी तरह बैकफुट पर दिखाई दिया। अपनी ही सरकार के अफसरों के खिलाफ पार्टी के पार्षदों का सड़कों पर उतरना अब पार्टी के भीतर असहजता पैदा कर रहा है। नेताओं और संगठन के बीच तालमेल की कमी साफ दिख रही है। कई वरिष्ठ कार्यकर्ता मानते हैं कि यह विवाद पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है और आने वाले चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है।