अमेरिका द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने के बाद जब आर्थिक अनिश्चितता का माहौल बना था, तब मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन ने देश की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाकर 6% कर दिया था। उस समय उन्होंने माना था कि वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत की वृद्धि दर पर असर पड़ सकता है। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
जीएसटी सुधार और नीतिगत फैसलों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा आई है। इसी वजह से नागेश्वरन ने अब अपनी भविष्यवाणी में बदलाव करते हुए कहा है कि चालू वित्त वर्ष में देश की जीडीपी ग्रोथ 7% तक पहुंच सकती है।
वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारत का शानदार प्रदर्शन
मुख्य आर्थिक सलाहकार नागेश्वरन ने हाल ही में आयोजित भारत समुद्री सप्ताह (IMW) के दौरान कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले एक साल में कई अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का मजबूती से सामना किया है। उन्होंने बताया कि तीन प्रमुख वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भारत की क्रेडिट रेटिंग में सुधार किया है, जो यह दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख बढ़ रही है। उनका मानना है कि यदि यही रफ्तार जारी रही, तो भारत जल्द ही ‘A रेटिंग’ श्रेणी में शामिल हो सकता है।
नागेश्वरन ने कहा कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के संतुलित कदमों ने देश को “आरामदायक आर्थिक स्थिति” में बनाए रखा है। उन्होंने बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था का जुझारूपन ही इसकी सबसे बड़ी ताकत है, जिसने मुश्किल हालात में भी विकास की दिशा बनाए रखी है।
किसने दी जीडीपी को मजबूती?
सीईए के मुताबिक, भारत की ग्रोथ में सबसे बड़ा योगदान जीएसटी सुधार, आयकर में राहत, और निवेश को प्रोत्साहन देने वाली नीतियों का रहा है। इन कदमों ने बाजार में डिमांड को बढ़ावा दिया है और निवेशकों का भरोसा भी मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि भले ही दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं अभी भी मंदी के डर से जूझ रही हों, लेकिन भारत ने न सिर्फ उस माहौल को झेला बल्कि उससे मजबूत उभरकर सामने आया है।
नागेश्वरन ने यह भी जोड़ा कि सरकार की नीतिगत स्थिरता, और संरचनात्मक सुधारों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था लगातार सुधार के रास्ते पर है, जो आने वाले वित्त वर्ष में 7% ग्रोथ रेट के रूप में दिखाई दे सकती है।
फरवरी में घटाया था अनुमान, अब फिर बढ़ा आत्मविश्वास
फरवरी 2025 में नागेश्वरन ने भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.3% से घटाकर 6% किया था। उस समय अमेरिकी शुल्क बढ़ोतरी और वैश्विक व्यापारिक तनाव की वजह से उन्होंने ग्रोथ के प्रति सतर्क दृष्टिकोण अपनाया था। लेकिन हालिया महीनों में भारत की आर्थिक गतिविधियों, टैक्स कलेक्शन और उत्पादन दरों में सुधार ने माहौल बदल दिया है। अब उनका कहना है कि देश की नीतिगत तत्परता और मजबूत घरेलू मांग ने अर्थव्यवस्था को फिर से रफ्तार दे दी है।
बैंकिंग सेक्टर पर भी दिया जवाब
जब नागेश्वरन से बैंक ऋण वृद्धि में सुस्ती पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल बैंक लोन ही अर्थव्यवस्था की ताकत का संकेतक नहीं होता। उन्होंने बताया कि गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (NBFCs), कॉमर्शियल पेपर्स, जमा प्रमाणपत्र (CDs) और इक्विटी मार्केट जैसे अन्य स्रोतों से भी बड़ी मात्रा में पूंजी जुटाई जा रही है।
उनके अनुसार, आरबीआई के आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि पिछले छह वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल संसाधन जुटाने की वार्षिक वृद्धि दर लगभग 28.5% रही है। यह दिखाता है कि देश में निवेश और पूंजी प्रवाह की स्थिति पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है।
नागेश्वरन ने कहा कि आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती और नकदी प्रबंधन के उपायों ने आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया है, जिससे बाजार में पर्याप्त तरलता बनी हुई है।