भारतीय ज्ञान परंपरा (Indian Knowledge Systems – IKS) भारत की प्राचीन बौद्धिक विरासत और आध्यात्मिक दृष्टि का प्रतिबिंब है। यह परंपरा वेद, उपनिषद, पुराण और बौद्ध-जैन साहित्य से प्रेरणा लेकर जीवन, शिक्षा, विज्ञान, कला और अध्यात्म को एक समग्र रूप में प्रस्तुत करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अंतर्गत इसे विशेष स्थान दिया गया है, जिसका उद्देश्य मन, बुद्धि, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर विद्यार्थियों को जागरूक, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण जीवन की दिशा में अग्रसर करना है।
डेली कॉलेज में IKS की पहल
डेली कॉलेज ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ते हुए एक समग्र शिक्षा प्रणाली विकसित की है। यहां पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय कर विद्यार्थियों में संतुलित विकास और सतत् सीखने की भावना को बढ़ावा दिया जा रहा है।
तीन प्रमुख स्तंभों — परंपरा, दृष्टि और लौकिक प्रयोजन पर आधारित इस पहल का उद्देश्य गुरु-शिष्य संबंधों की भावना को पुनर्जीवित करना, धर्म और जुड़ाव पर आधारित भारतीय दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देना और जीवन के विविध क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, पर्यावरण, गणित, डिज़ाइन आदि में प्राचीन ज्ञान के व्यावहारिक उपयोग को बढ़ावा देना है।
डेली कॉलेज का उद्देश्य केवल ज्ञान अर्जन नहीं, बल्कि उसे जीवन में उतारने की प्रेरणा देना है। संस्थान विद्यार्थियों में आत्मबल, नैतिकता और सजगता का विकास कर उन्हें उत्तरदायी नागरिक और संवेदनशील नेता के रूप में तैयार कर रहा है।
TEDx में “क्षण में रहना” विषय पर विचार विमर्श
डेली कॉलेज में आयोजित TEDx कार्यक्रम का विषय था “क्षण में रहना”। इस अवसर पर बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शिक्षाविद, अधिकारी और अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम में डेली कॉलेज बोर्ड के अध्यक्ष महाराजा विक्रम सिंह पुआर ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
विद्यार्थियों के प्रेरक वक्तव्य
डेली कॉलेज की विद्यार्थी देवेश्वरी सिंह ने “राष्ट्र वर्तमान को भूल क्यों जाते हैं” विषय पर बोलते हुए कहा कि जैसे व्यक्ति अपने अतीत और भविष्य में उलझा रहता है, वैसे ही राष्ट्र भी वर्तमान की महत्ता को अनदेखा कर देते हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन, युद्ध और वैश्विक राजनीति के उदाहरण देते हुए कहा कि हमें ऐसे शासन की आवश्यकता है जो वर्तमान क्षण में सजग और जिम्मेदार निर्णय ले सके।
काशवी धवन ने “संलग्न पीढ़ी और धीमे चलने की कला” विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा कि आज की “कनेक्टेड” पीढ़ी को सच्चे अर्थों में विराम लेना और जीवन का स्वाद धीमेपन में खोजना सीखना चाहिए। उन्होंने माइंडफुलनेस और जॉन काबट-जिन के विचारों का उल्लेख करते हुए सजग जीवनशैली अपनाने का संदेश दिया।
पूर्व छात्रा नीति सिंघल ने “फैशन और सजगता : आत्मा और शैली का प्रतिबिंब” विषय पर कहा कि फैशन केवल बाहरी दिखावे का माध्यम नहीं, बल्कि यह आत्म-अभिव्यक्ति और मानसिक संतुलन का प्रतीक है। सोच-समझकर कपड़े पहनना व्यक्ति को आत्म-जागरूकता और स्थिरता की ओर ले जाता है।
आन्या संघवी ने “परिवर्तन को सशक्त बनाना” विषय पर अपने जीवन की प्रेरणादायक कहानी साझा की। ग्यारह वर्ष की उम्र में छेड़छाड़ की घटना देखने के बाद उन्होंने आत्मरक्षा सीखने का संकल्प लिया। सोलह वर्ष की आयु में ब्लैक बेल्ट प्राप्त करने के बाद उन्होंने D.F.E.N.D. संस्था की स्थापना की, जो भारत की लड़कियों को आत्मरक्षा और जागरूकता के माध्यम से सशक्त बनाती है।
वक्ताओं के विचार और भारतीय दृष्टिकोण
राघव कृष्ण ने “क्षण में रहना : मन और समय” विषय पर कहा कि आधुनिक जीवन की भागदौड़ ने मनुष्य को वर्तमान से और अपने असली स्वभाव से दूर कर दिया है। उन्होंने भारतीय दर्शन और मनोविज्ञान के संदर्भ में बताया कि सच्चा आनंद तभी संभव है जब व्यक्ति अपने भीतर के स्व से जुड़कर वर्तमान में जीता है।
मोहन राघवन ने “क्षण में रहना : आनंद का विस्तार” पर बोलते हुए कहा कि सच्चा आनंद ‘भोग’ और ‘योग’ के संतुलन में निहित है — ऐसा आनंद जो वर्तमान में जीने का अवसर देता है बिना अगले क्षण की लालसा के।
शिल्पा पंडित ने “रस : जहाँ कला, भावना और मस्तिष्क मिलते हैं” विषय पर भारतीय रस सिद्धांत के माध्यम से बताया कि संगीत और नृत्य केवल कला नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और मानसिक आनंद के साधन हैं। जब कलाकार सृजन में पूर्ण रूप से डूब जाता है, तब वह आत्म-चेतना से मुक्त होकर निर्मल आनंद का अनुभव करता है।
उपासना तेंडुलकर ने “सब कुछ एक नाट्य है” विषय पर नाट्यशास्त्र से प्रेरणा लेते हुए कहा कि जीवन स्वयं एक महान नाटक है — हर कर्म एक अभिनय और हर क्षण एक नृत्य है। उन्होंने कहा कि हमें केवल वर्तमान में जीना नहीं, बल्कि वर्तमान बन जाना सीखना चाहिए।
विक्रांत बधवार ने “गति में स्थिरता” पर बोलते हुए बताया कि शांति केवल मौन में नहीं, बल्कि हर गति में संभव है। उन्होंने श्वास तकनीक ‘रिब-ब्रीदिंग’ का अभ्यास साझा करते हुए कहा कि सजग गति और सांस के अभ्यास से व्यक्ति ध्यान और योग से परे भी गहन संतुलन पा सकता है।
कार्यक्रम का आरंभ और समापन
कार्यक्रम की शुरुआत में डेली कॉलेज की प्राचार्या डॉ. गुनमीत बिंद्रा और महाराज विक्रम सिंह पुआर ने दीप प्रज्ज्वलन कर TEDx कार्यक्रम का शुभारंभ किया। डॉ. बिंद्रा ने सभी वक्ताओं का स्वागत करते हुए उन्हें सम्मान स्वरूप प्रतीक चिह्न भेंट किए और कहा कि ऐसे आयोजन विद्यार्थियों में चिंतनशीलता, संवेदनशीलता और नवाचार की भावना को बढ़ाते हैं।