मध्य प्रदेश का इतिहास भारत के राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों से जुड़ा हुआ है। देश की स्वतंत्रता के बाद जब भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने का निर्णय लिया गया, तब 1956 में मध्य प्रदेश का निर्माण हुआ। आयोग ने जनसंख्या, कृषि, उद्योग, भाषा और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं की समीक्षा के बाद इस विशाल राज्य को आकार दिया। तब से लेकर अब तक प्रदेश लगातार विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता गया है। वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया, तब भी मध्य प्रदेश अपने आकार और संसाधनों की दृष्टि से देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बना रहा। इस वर्ष, 1 नवंबर को मध्य प्रदेश अपने 70वें स्थापना दिवस का जश्न मना रहा है, और अगले पांच वर्षों में यह अपने हीरक जयंती (75 वर्ष) की ओर अग्रसर होगा।
राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें और गठन की प्रक्रिया
स्वतंत्रता के बाद 29 दिसंबर 1953 को भारत सरकार ने राज्यों के पुनर्गठन के लिए जस्टिस सैयद फैसल अली की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया। आयोग में हृदयनाथ कुंजरू और वल्लभ माधव पणिकर सदस्य थे। इस आयोग ने 30 सितंबर 1955 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में यह अनुशंसा की गई थी कि प्रशासनिक और सांस्कृतिक दृष्टि से मध्य भारत के कई हिस्सों को एकीकृत कर नया राज्य बनाया जाए। इसके बाद, 18 अप्रैल 1956 को लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश हुआ और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 1 नवंबर 1956 को नए मध्य प्रदेश राज्य का विधिवत गठन हुआ। उस समय सेंट्रल प्रोविंसेज़ एंड बरार के मराठी भाषी जिले महाराष्ट्र में सम्मिलित कर दिए गए, जबकि 43 जिलों को मिलाकर मध्य प्रदेश की नींव रखी गई।
नए राज्य के गठन पर आयोग का दृष्टिकोण
राज्य पुनर्गठन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मध्य प्रदेश को एक समृद्ध कृषि प्रधान राज्य बताया था। आयोग का मानना था कि यह प्रदेश गेहूं और चावल जैसे खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होगा और देश की खाद्य सुरक्षा में योगदान देगा। बाद में, वर्ष 2000 में चावल उत्पादक क्षेत्र ‘छत्तीसगढ़’ को अलग कर नया राज्य बनाया गया, जिससे मध्य प्रदेश का स्वरूप बदला, लेकिन इसकी कृषि संपन्नता में कोई कमी नहीं आई।
पंडित रविशंकर शुक्ल बने पहले मुख्यमंत्री
जब 31 अक्टूबर और 1 नवंबर 1956 की मध्यरात्रि में मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया, तब पंडित रविशंकर शुक्ल इसके पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने अपने संबोधन में कहा था “ऊपर लहलहाते खेत और नीचे रत्नगर्भा भूमि यही नए मध्य प्रदेश की पहचान है।” उनके बाद मुख्यमंत्री बने कैलाशनाथ काटजू ने कहा कि “प्रकृति ने इस भूमि को अपनी समृद्धि से नवाजने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।” इन शब्दों ने आने वाले दशकों में प्रदेश की विकास यात्रा की दिशा तय कर दी।
विकास की राह पर बढ़ता मध्य प्रदेश
सत्तर वर्षों में मध्य प्रदेश ने शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, ऊर्जा, परिवहन और पर्यटन के क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। आज यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रदेश ने ‘शक्ति का अविरल स्रोत’ बनने की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाए हैं। यहां के नागरिकों का जीवन स्तर, आय और सुविधाओं तक पहुंच पहले की तुलना में कई गुना बेहतर हुई है।
प्रति व्यक्ति आय में 584 गुना वृद्धि
राज्य गठन के समय 1956 में मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय मात्र 261 रुपये थी। आज यह बढ़कर 1.52 लाख रुपये प्रति वर्ष हो गई है। यह वृद्धि न केवल आर्थिक प्रगति को दर्शाती है, बल्कि नागरिकों के जीवन स्तर में आए सुधार का प्रमाण भी है। औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार, कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी और सेवाक्षेत्र में वृद्धि ने राज्य की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।
कृषि में रचा स्वर्णिम इतिहास
कृषि के क्षेत्र में मध्य प्रदेश ने देशभर में अपनी अलग पहचान बनाई है। लगातार सात बार ‘कृषि कर्मण पुरस्कार’ प्राप्त करने वाला यह देश का पहला राज्य है। गेहूं उत्पादन में मध्य प्रदेश अब भारत के तीन शीर्ष राज्यों में शामिल है, जबकि दलहन उत्पादन में यह देश में पहले स्थान पर है। कपास उत्पादन में भी राज्य पांचवें स्थान पर है। सिंचाई परियोजनाओं, आधुनिक तकनीकों और फसलों के विविधीकरण ने यहां के किसानों को सशक्त किया है।
स्वास्थ्य सेवाओं का हुआ विस्तार
प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार ने ग्रामीण और आदिवासी इलाकों तक राहत पहुंचाई है। आज राज्य के 3,08,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में उप स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कार्यरत हैं। इनमें से लगभग 93,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जनजातीय इलाका है। कुल मिलाकर प्रदेश की 7.26 करोड़ जनसंख्या अब किसी न किसी रूप में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हुई है।
राज्य का बजट तीन गुना से अधिक बढ़ा
वर्ष 2000-01 में राज्य का वार्षिक बजट 1.06 लाख करोड़ रुपये था, जो अब 2024-25 में बढ़कर 3.26 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वित्तीय विस्तार के साथ बैंकिंग सुविधाओं में भी तेजी से वृद्धि हुई है। आज प्रदेश में 8,586 बैंक शाखाएं कार्यरत हैं जिनमें 33% ग्रामीण और 67% शहरी क्षेत्रों में हैं। इसके अलावा, 38 जिला सहकारी बैंक और 4,536 प्राथमिक कृषि ऋण समितियां किसानों और ग्रामीणों को वित्तीय सहयोग प्रदान कर रही हैं।
निवेश, उद्योग और रोजगार के नए अवसर
प्रदेश ने औद्योगिक विकास के क्षेत्र में भी बड़ा परिवर्तन देखा है। इंवेस्टर समिट्स, नई औद्योगिक नीतियों और बिजनेस फ्रेंडली माहौल के जरिए निवेश के नए अवसर खोले गए हैं। ऑटोमोबाइल, फार्मा, टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्रों में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां निवेश कर रही हैं। साथ ही, रोजगार सृजन के लिए औद्योगिक क्लस्टर और विशेष आर्थिक क्षेत्र विकसित किए जा रहे हैं।
परिवहन, शिक्षा और पर्यटन में नई पहचान
परिवहन के क्षेत्र में मध्य प्रदेश अब देश के सबसे बेहतर सड़क नेटवर्क वाले राज्यों में से एक है। एक्सप्रेसवे, फ्लाईओवर और नए हवाई अड्डों ने यात्रा को आसान बनाया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रदेश में विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों की संख्या बढ़ी है, जबकि खजुराहो, सांची, मांडू, और पचमढ़ी जैसे पर्यटन स्थलों ने राज्य को वैश्विक मानचित्र पर विशेष पहचान दिलाई है।
70 सालों में आत्मविश्वास से भरा ‘नया मध्य प्रदेश’
सत्तर वर्षों की यात्रा में मध्य प्रदेश ने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से एक सशक्त राज्य के रूप में खुद को स्थापित किया है। आज यह प्रदेश आत्मनिर्भरता, कृषि नवाचार, औद्योगिक विकास और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन चुका है। जैसे-जैसे यह अपने 75वें वर्ष की ओर बढ़ रहा है, मध्य प्रदेश नए भारत के विकास का एक मजबूत स्तंभ बनकर उभर रहा है।