मध्यप्रदेश के खंडवा और देवास जिलों के नक्शे में बड़ा बदलाव हुआ है, क्योंकि राज्य को एक नया और महत्वपूर्ण उपहार मिला है ओंकारेश्वर अभयारण्य। प्रदेश स्थापना दिवस, 1 नवंबर के मौके पर इसे औपचारिक रूप से राज्य के 27वें अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया। यह नया वन्य क्षेत्र 611.753 वर्ग किलोमीटर में फैला होगा, जिसमें खंडवा जिले का लगभग 343.274 वर्ग किमी और देवास जिले का करीब 268.479 वर्ग किमी वन क्षेत्र शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस पहल को राज्य की पर्यावरणीय और जैविक विविधता के लिए ऐतिहासिक कदम बताया है। उन्होंने कहा कि यह अभयारण्य न केवल वन्यजीवों के संरक्षण में अहम भूमिका निभाएगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए पर्यटन आधारित रोजगार के नए अवसर भी खोलेगा।
वन्यजीव संरक्षण और पर्यटन का संगम बनेगा ओंकारेश्वर अभयारण्य
ओंकारेश्वर अभयारण्य को इस तरह विकसित किया जा रहा है कि यह वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ ईको-टूरिज्म का बड़ा केंद्र बन सके। यहां पहले से ही तेंदुआ, भालू, सांभर, हाइना और चीतल जैसे कई वन्य जीव मौजूद हैं। अब इस क्षेत्र में बाघों को बसाने की तैयारी की जा रही है, जिससे यह अभयारण्य ‘टाइगर हब’ के रूप में भी पहचाना जा सकेगा। इसके अलावा असम से जंगली भैंसे और गैंडे लाने की योजना पर भी तेजी से काम चल रहा है। यह कदम प्रदेश की जैव विविधता को और समृद्ध करेगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि जैसे कुनो ने चीतों के पुनर्वास में मिसाल कायम की, वैसे ही ओंकारेश्वर भविष्य में मध्यप्रदेश का प्रमुख पर्यटन और वन्यजीव केंद्र बनेगा।
यहां के वन्य जीव और प्रमुख वनस्पतियां
ओंकारेश्वर अभयारण्य क्षेत्र अपने विविध वन्यजीवों और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध रहेगा। यहां के प्रमुख मांसाहारी जीवों में तेंदुआ, रीछ, सियार, लकड़बग्घा और बाघ शामिल होंगे, जबकि शाकाहारी जीवों में चीतल, मोर, सांभर, चिंकारा, खरगोश, भेड़की, बंदर और सेही पाए जाते हैं। इस क्षेत्र की वनस्पतियां भी बेहद खास हैं यहां सागौन, सालई और धावड़ा जैसे वृक्ष बड़ी संख्या में हैं। ये पेड़ न केवल जंगल की सुंदरता बढ़ाते हैं बल्कि वन्यजीवों को प्राकृतिक आवास भी प्रदान करते हैं।
अभयारण्य का स्वरूप और सीमाएं
वन विभाग द्वारा तैयार की गई विस्तृत योजना के अनुसार, ओंकारेश्वर अभयारण्य खंडवा वनमंडल के पुनासा, मूंदी, चांदगढ़ और बलडी परिक्षेत्र तथा देवास वनमंडल के सतवास, कांटाफोड़, पुंजापुरा और उदयनगर परिक्षेत्र को मिलाकर बनाया जाएगा। विशेष ध्यान दिया गया है कि इस अभयारण्य में कोई भी राजस्व या वनग्राम शामिल न हो, ताकि स्थानीय निवासियों की आजीविका पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। इसके अलावा, डूब क्षेत्र (submergence area) को भी अभयारण्य की सीमा से बाहर रखा गया है ताकि मछुआरों और ग्रामीणों के जीवनयापन पर असर न पड़े।
52 टापुओं की अनोखी संरचना
मध्यप्रदेश के खंडवा और देवास जिलों के नक्शे में बड़ा बदलाव हुआ है, क्योंकि राज्य को एक नया और महत्वपूर्ण उपहार मिला है ओंकारेश्वर अभयारण्य। प्रदेश स्थापना दिवस, 1 नवंबर के मौके पर इसे औपचारिक रूप से राज्य के 27वें अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया।ओंकारेश्वर अभयारण्य का सबसे अनोखा पहलू इसके 52 छोटे-बड़े टापू (Islands) हैं, जो इसे अन्य अभयारण्यों से अलग बनाते हैं। इनमें से 31 टापू मूंदी रेंज में और 21 टापू चांदगढ़ रेंज में स्थित हैं। इन टापुओं की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक सौंदर्य इसे ईको-टूरिज्म के लिए बेहद आकर्षक बनाएंगे। वन विभाग की योजना के अनुसार, बोरियामाल और जलचौकी धारीकोटला क्षेत्रों को प्रमुख ईको-टूरिज्म केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा।
टूरिज्म विकास पर विशेष ध्यान
राज्य सरकार का उद्देश्य केवल वन्यजीव संरक्षण नहीं बल्कि पर्यटन और ग्रामीण विकास को समान रूप से बढ़ावा देना भी है। इसी दृष्टि से अभयारण्य में आधुनिक पर्यटन सुविधाएं विकसित की जाएंगी। यहां होटल, रिसोर्ट और रेस्ट हाउस बनाए जाएंगे, ताकि देश-विदेश से आने वाले पर्यटक आरामदायक अनुभव प्राप्त कर सकें। सड़कें चौड़ी की जाएंगी, नदी तटों और पहाड़ी ढालों का संरक्षण करते हुए उन्हें संवारा जाएगा। विशेष रूप से रात्रिकालीन यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ करने की योजना है, ताकि वन्यजीवों को कोई हानि न पहुंचे और सुरक्षा व्यवस्था मजबूत बनी रहे।
स्थानीय लोगों के लिए बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
वन अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन का मानना है कि ओंकारेश्वर अभयारण्य से न सिर्फ प्राकृतिक संपदा की रक्षा होगी, बल्कि आसपास के गांवों में पर्यटन आधारित रोजगार के अवसर भी तेजी से बढ़ेंगे। लगभग 20 गांव जिनमें अंधारवाड़ी, चिकटीखाल, सिरकिया, भेटखेड़ा, पुनासा और नर्मदानगर प्रमुख हैं — इस विकास से सीधे लाभान्वित होंगे। यहां स्थानीय लोगों को गाइड, नाव चालक, रिसोर्ट कर्मी, हस्तशिल्प विक्रेता और ईको-टूरिज्म स्टाफ के रूप में रोजगार दिया जाएगा।
राज्य की पर्यावरणीय दृष्टि को नई दिशा
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि मध्यप्रदेश पहले से ही जैव विविधता के क्षेत्र में अग्रणी राज्य है चीतों के सफल पुनर्स्थापन से यह साबित हो चुका है। अब ओंकारेश्वर अभयारण्य उस दिशा में अगला बड़ा कदम है। उन्होंने बताया कि भविष्य में नामीबिया से लाए गए चीतों को नौरादेही अभयारण्य में भी बसाने की योजना है। इस तरह राज्य का हर कोना न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से समृद्ध बनेगा बल्कि पर्यटन और ग्रामीण विकास की दृष्टि से भी आत्मनिर्भर हो सकेगा।