सरकार ने OPS को कहा अलविदा, पेश की नई पेंशन स्कीम

देशभर के करोड़ों सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली की उम्मीदों पर अब पूरी तरह विराम लगता नजर आ रहा है। केंद्र सरकार ने साफ संकेत दे दिए हैं कि अब OPS का दौर लौटने वाला नहीं है। सरकार का रुख स्पष्ट है — आगे का रास्ता नई पेंशन योजना (NPS) और एकीकृत पेंशन योजना (UPS) ही होंगी। इसका मतलब है कि आने वाले समय में सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति लाभ इन्हीं नई योजनाओं के तहत तय किए जाएंगे।

कहां से शुरू हुई OPS बनाम NPS की बहस

यह विवाद कोई नया नहीं है। साल 2004 में केंद्र सरकार ने OPS को समाप्त कर NPS लागू की थी। पुरानी पेंशन योजना पूरी तरह सरकारी फंड पर आधारित थी, जिसमें रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों को गारंटीड पेंशन मिलती थी। लेकिन नई NPS प्रणाली में कर्मचारी और सरकार दोनों वेतन का एक निश्चित हिस्सा योगदान (Contribution) के रूप में जमा करते हैं। यह पेंशन निवेश आधारित और अंशदायी (Contributory) बन गई।

सरकार का कहना है कि OPS जैसी गैर-अंशदायी योजनाएं वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं हैं, क्योंकि इनका पूरा बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है। यही कारण है कि OPS को बंद किया गया था और NPS को लागू किया गया, ताकि पेंशन व्यवस्था दीर्घकालिक रूप से स्थिर बनी रहे।

UPS: OPS और NPS का संतुलित संस्करण

कर्मचारियों की बढ़ती मांग और असंतोष के बीच केंद्र ने 1 अप्रैल 2025 से एकीकृत पेंशन योजना (UPS) लागू की है। इस नई योजना में NPS और OPS दोनों की कुछ प्रमुख खूबियों का मिश्रण किया गया है। UPS में कर्मचारियों को NPS की तरह योगदान देना होगा, लेकिन साथ ही न्यूनतम पेंशन गारंटी भी दी जाएगी।

सरकार का मानना है कि UPS से एक संतुलित पेंशन ढांचा तैयार होगा, जिसमें निवेश की पारदर्शिता और पेंशन की स्थिरता दोनों सुनिश्चित की जा सकेंगी।

8वां वेतन आयोग और OPS पर फिर से उठा मुद्दा

जब 8वें वेतन आयोग की तैयारियां शुरू हुईं, तो कर्मचारी संगठनों ने OPS की बहाली को फिर से प्रमुख मुद्दा बनाया। लेकिन केंद्र सरकार ने दो टूक कहा कि OPS पर किसी भी स्तर पर पुनर्विचार नहीं किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में 8वें वेतन आयोग की शर्तों (Terms of Reference) को मंजूरी दी गई। इन शर्तों में एक बिंदु खास ध्यान देने लायक है — आयोग को गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की लागत और वित्तीय बोझ पर विचार करना होगा। यह संकेत है कि OPS को अब वित्तीय रूप से अस्थिर मॉडल माना जा रहा है।

क्यों OPS पर लौटना मुश्किल है

वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, OPS की वापसी से सरकारी बजट पर भारी दबाव पड़ेगा। कई राज्यों में पहले ही पेंशन व्यय कुल बजट का 20 से 25 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। अगर केंद्र सरकार भी OPS लागू करती है, तो विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिए फंड की भारी कमी हो सकती है।

यानी सरकार के लिए OPS को दोबारा लागू करना राजकोषीय रूप से असंभव हो जाएगा। यही वजह है कि केंद्र अब वित्तीय अनुशासन और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए NPS और UPS को ही सही मॉडल मान रहा है।

सरकार का लक्ष्य अब एक ऐसी पेंशन नीति लागू करना है जो कर्मचारियों के हितों की रक्षा करे और साथ ही अर्थव्यवस्था पर बोझ न डाले। UPS में NPS जैसी निवेश प्रणाली बनी रहेगी, जिससे पेंशन फंड की वृद्धि होती रहे, वहीं OPS जैसी न्यूनतम पेंशन गारंटी भी दी जाएगी।

फाइनेंशियल एक्सप्रेस (FE) की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार UPS और NPS को ही अधिक पारदर्शी, टिकाऊ और व्यवहारिक समाधान मान रही है।