इंदौर पुलिस के दो अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट ने झूठा हलफनामा पेश करने के मामले में कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने एडिशनल डीसीपी दिशेष अग्रवाल और चंदन नगर थाना प्रभारी इंद्रमणि पटेल को चेतावनी देते हुए कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में झूठी जानकारी देना बेहद गंभीर अपराध है, खासकर तब जब यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा मामला हो।
जमानत याचिका पर विरोध के दौरान पेश हुआ गलत हलफनामा
मामला तब सामने आया जब इन अधिकारियों ने आरोपी अनवर हुसैन की जमानत याचिका का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया। इस हलफनामे में दावा किया गया था कि अनवर हुसैन के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें कुछ गंभीर अपराध जैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) भी शामिल हैं।
लेकिन अदालत ने जब इन तथ्यों की जांच कराई, तो पाया कि हलफनामे में बताए गए आठ मामलों में से चार ऐसे थे, जिनमें अनवर हुसैन आरोपी के रूप में दर्ज ही नहीं था। इस खुलासे के बाद कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के तर्कों को तुरंत खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा – गलती का बहाना स्वीकार्य नहीं
जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पुलिस अधिकारियों की सफाई को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि “यह गलती कंप्यूटर से तैयार होने या पिता-पुत्र के नाम एक जैसे होने की वजह से हुई” — ऐसा कहना न्याय के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की लापरवाही नागरिक के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को प्रभावित करती है, जो किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
टीआई इंद्रमणि पटेल को कारण बताओ नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने थाना प्रभारी इंद्रमणि पटेल को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इस झूठे हलफनामे की तैयारी में शामिल अन्य पुलिस कर्मियों की भूमिका की भी जांच की जाए।
25 नवंबर को कोर्ट में व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य
पीठ ने आदेश दिया है कि एडिशनल डीसीपी दिशेष अग्रवाल और टीआई इंद्रमणि पटेल, दोनों को 25 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित होना होगा। इसके साथ ही उन्हें दो दिन पहले तक अपने स्पष्टीकरण के साथ लिखित जवाब प्रस्तुत करना होगा।
अदालत ने आरोपी को दी जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने यह मानते हुए कि पुलिस द्वारा दी गई गलत जानकारी ने मामले को प्रभावित किया, आरोपी अनवर हुसैन को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारियों का यह आचरण न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, और भविष्य में इस तरह की लापरवाही दोबारा न हो, इसके लिए कड़ी चेतावनी दी गई है।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गलतबयानी या तथ्य छिपाने को बर्दाश्त नहीं करेगा। अदालत ने कहा कि “राज्य के अधिकारी यदि सच्चाई से हटकर काम करेंगे, तो यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी हनन है।”