इंदौर नगर निगम में अवैध निर्माणों को लेकर एक बार फिर बवाल मचा हुआ है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव और निगमायुक्त दिलीप यादव की मौजूदगी में हुई समीक्षा बैठक में पार्षदों ने भवन अधिकारी (बी.ओ.) पर खुलेआम गंभीर आरोप लगाए। पार्षदों का कहना है कि शहर में निगम की अनुमति के बिना तेजी से अवैध भवन खड़े हो रहे हैं और यह सब कुछ “भवन अधिकारी की शह पर” किया जा रहा है। बैठक के दौरान माहौल उस समय गर्म हो गया जब कुछ पार्षदों ने कहा कि शिकायतों के बावजूद निगम अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
राजमोहल्ला में अवैध निर्माण, निगम की चुप्पी पर सवाल
समीक्षा बैठक के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा राजमोहल्ला (जवाहर मार्ग) इलाके में बने एक विवादित भवन की हुई। बताया गया कि यहां बिल्डर रमेश हासानंदानी ने नगर निगम से स्वीकृत नक्शा लिए बिना ही पूरी इमारत खड़ी कर दी। स्थानीय लोगों और पार्षदों ने इस अवैध निर्माण की शिकायत कई बार भवन अधिकारी अश्विन जनवदे से की, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। शिकायतकर्ताओं के मुताबिक, यह पूरा मामला बिल्डर और भवन अधिकारी की मिलीभगत से हुआ है। लोगों का कहना है कि अगर निगम अधिकारी समय रहते सख्त कदम उठाते, तो यह अवैध निर्माण रुक सकता था।
मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में भी की शिकायत, फिर भी कार्रवाई नहीं
नागरिकों ने निराश होकर मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में भी शिकायत दर्ज कराई। लेकिन हैरानी की बात यह है कि हेल्पलाइन पर शिकायत जाने के बाद भी निगम की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। शिकायतकर्ताओं ने कहा कि जब जनता की बात मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के बाद भी अधिकारी चुप हैं, तो इसका मतलब है कि “सिस्टम के भीतर ही गड़बड़ी है।” शहर के नागरिकों का कहना है कि अधिकारी शिकायतें सुन तो लेते हैं, लेकिन “भ्रष्ट नेटवर्क” के कारण कार्रवाई फाइलों में ही दबी रह जाती है।
पार्षदों का आरोप — “जनवदे के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं?”
बैठक में मौजूद पार्षदों ने सवाल उठाया कि आखिर भवन अधिकारी अश्विन जनवदे के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। पार्षदों ने कहा, “हमारी आंखों के सामने अवैध निर्माण पूरे इलाके में हो रहे हैं, लेकिन निगम के अधिकारी केवल मूकदर्शक बने हुए हैं। जब तक इन पर कार्रवाई नहीं होगी, इंदौर में अवैध निर्माण रुकने वाले नहीं।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कई अवैध इमारतें रातोंरात बन जाती हैं, और बाद में जब मामला उठता है, तब निगम कहता है कि उसे इसकी जानकारी नहीं थी। यह लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत है।
सिस्टम पर उठे सवाल, जिम्मेदारी से बचता निगम
इंदौर नगर निगम की भूमिका को लेकर अब सवाल और गहराने लगे हैं। पार्षदों का कहना है कि “जब जनता भरोसा करके शिकायत करती है, तो निगम को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।”
लेकिन बार-बार शिकायतों के बावजूद कार्रवाई न होना, अधिकारियों की जवाबदेही पर सवाल खड़े करता है। लोगों का कहना है कि इंदौर जैसा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट वाला शहर अगर अवैध निर्माणों से अटा पड़ा है, तो यह दिखाता है कि सिस्टम में कहीं न कहीं गंभीर खामी और भ्रष्टाचार मौजूद है।
प्रदेश स्तर पर भी चिंता — प्रभारी मंत्री मोहन यादव पर उठे सवाल
मामले ने अब राजनीतिक रंग भी लेना शुरू कर दिया है। चूंकि इंदौर जिले के प्रभारी मंत्री खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हैं, ऐसे में विपक्ष और स्थानीय नागरिक दोनों ही सवाल उठा रहे हैं कि “जब मुख्यमंत्री के जिम्मे वाला जिला ही ऐसे हालात में है, तो बाकी जिलों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।” लोगों का कहना है कि यदि सरकार और प्रशासन वास्तव में पारदर्शिता चाहते हैं, तो ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करनी ही होगी।
जनता की मांग — “जवाबदेही तय हो, दोषियों पर कार्रवाई हो”
इंदौर के नागरिकों और पार्षदों ने एक स्वर में मांग की है कि अवैध निर्माणों की जांच की जाए, और इसमें शामिल अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई हो। लोगों का कहना है कि यह केवल एक इलाके का मामला नहीं है, बल्कि यह “नगर निगम के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें” उजागर करता है। अब देखना यह होगा कि महापौर और निगमायुक्त इस गंभीर मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं क्या सचमुच दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा।