‘वंदे मातरम्’ ये सिर्फ दो शब्दों का मेल नहीं, बल्कि पूरे भारत की आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह वह स्वर है जिसने गुलाम भारत के सीने में आज़ादी, स्वाभिमान और एकता की चिंगारी भड़काई थी। 7 नवंबर 2025 को इस अमर राष्ट्रगीत को 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस ऐतिहासिक अवसर पर केंद्र सरकार ने पूरे देश में “वंदे मातरम् उत्सव” मनाने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह उत्सव 1 अक्टूबर से प्रारंभ हो चुका है, जिसका उद्देश्य नई पीढ़ी को उस गीत के महत्व से अवगत कराना है जिसने भारत को आज़ादी की दिशा में अग्रसर किया।
किसने लिखा ‘वंदे मातरम्’?
‘वंदे मातरम्’ की रचना बंगाल के महान साहित्यकार, कवि और विचारक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। उन्होंने यह गीत 1874–75 के दौरान लिखा, जब भारत अंग्रेजी शासन के अधीन था। उस दौर में भारतीय जनमानस ब्रिटिश हुकूमत की कठोर नीतियों से दबा हुआ था। बंकिमचंद्र चाहते थे कि देशवासियों में मातृभूमि के प्रति प्रेम और आत्मगौरव की भावना जागृत हो। इसी उद्देश्य से उन्होंने यह गीत लिखा, जिसमें भारत भूमि को “मां” के रूप में पूजित किया गया है।
बाद में यह गीत उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया गया, जो 1882 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास संन्यासी विद्रोह (Sanyasi Rebellion) की पृष्ठभूमि पर आधारित था, जिसमें साधु-संन्यासी विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्ष करते हैं। उपन्यास में “वंदे मातरम्” का स्वर देशभक्ति और बलिदान का प्रतीक बनकर उभरा।
क्यों लिखा गया था ‘वंदे मातरम्’?
उस समय अंग्रेज सरकार ने आदेश दिया था कि हर सरकारी समारोह में केवल ब्रिटिश राजकीय गीत ‘गॉड सेव द क्वीन’ गाया जाएगा। यह निर्णय बंकिमचंद्र को नागवार गुज़रा। उन्हें लगा कि भारत, जिसकी संस्कृति, मातृभूमि और परंपराएं इतनी समृद्ध हैं, उसके पास अपनी धरती की महिमा का गुणगान करने वाला कोई गीत नहीं है। यही भाव उनके मन में “वंदे मातरम्” की रचना का कारण बना।
इस गीत के शब्दों में केवल मातृभूमि की स्तुति नहीं, बल्कि एक ऐसे राष्ट्र की आत्मा की पुकार थी जो अपने सम्मान के लिए जागना चाहता था। जब यह गीत पहली बार सुना गया, तब लोगों के भीतर देशभक्ति की लहर दौड़ गई यह गीत हर भारतीय के हृदय में आज़ादी का मन्त्र बन गया।
पहली बार कब गाया गया ‘वंदे मातरम्’?
‘वंदे मातरम्’ का पहला सार्वजनिक गायन 1896 में हुआ था। यह अवसर था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के कलकत्ता अधिवेशन का, जहां स्वयं रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे स्वरबद्ध कर गाया। सभागार में उपस्थित लोगों की आंखें गर्व और भावनाओं से भर आईं। उस पल हर भारतीय के लिए यह गीत केवल संगीत नहीं रहा, बल्कि आजादी का उद्घोष बन गया। इसके बाद यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा बन गया। कॉलेजों, जुलूसों और सभाओं में युवा इस गीत को गर्व से गाते थे। ब्रिटिश शासन ने कई बार इसके सार्वजनिक गायन पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन “वंदे मातरम्” की गूंज को कोई भी सत्ता रोक नहीं सकी।
स्वतंत्रता संग्राम में ‘वंदे मातरम्’ की भूमिका
आजादी के आंदोलन में “वंदे मातरम्” ने भारतीयों को एक सूत्र में पिरो दिया। यह गीत स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन की आत्मा बन गया। जब भी स्वतंत्रता सेनानियों को मनोबल की जरूरत पड़ती, यह गीत उनके अंदर नई ऊर्जा का संचार करता था। जेल की दीवारों पर, विरोध जुलूसों में और गुप्त सभाओं में “वंदे मातरम्” की गूंज सुनाई देती थी। भगत सिंह, बिपिनचंद्र पाल, लाला लाजपत राय, सुभाषचंद्र बोस और अन्य क्रांतिकारी इस गीत को प्रेरणा का स्रोत मानते थे। यह गीत न केवल स्वतंत्रता का प्रतीक बना, बल्कि भारत की एकता और त्याग की भावना का भी प्रतिनिधित्व करता है।
राष्ट्रगीत का दर्जा कब मिला?
आज़ादी के बाद जब संविधान सभा भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों पर विचार कर रही थी, तब “वंदे मातरम्” के महत्व को विशेष रूप से स्वीकार किया गया। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से पहले, सभा के पहले अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसे भारत के राष्ट्रगीत (National Song) के रूप में मान्यता दी।
उन्होंने कहा था – वंदे मातरम् हमारे स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा रहा है, और सदैव रहेगा। इसे राष्ट्रगीत का दर्जा देकर हम उन सभी देशभक्तों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं जिन्होंने इसके स्वरों के साथ अपने प्राणों की आहुति दी।
150वीं वर्षगांठ पर देशभर में ‘वंदे मातरम् उत्सव’
इस वर्ष जब “वंदे मातरम्” अपनी 150वीं वर्षगांठ मना रहा है, तो देशभर में इसका भव्य उत्सव देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने 1 अक्टूबर 2025 से राष्ट्रव्यापी ‘वंदे मातरम् उत्सव’ शुरू किया है।
इस उत्सव के अंतर्गत स्कूलों, विश्वविद्यालयों और सांस्कृतिक संस्थानों में विशेष कार्यक्रम, सामूहिक गायन और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी अपने स्तर पर विभिन्न राज्यों में समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया है। उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने कहा – वंदे मातरम् सिर्फ एक गीत नहीं, यह भारत माता की आराधना है। इसमें राष्ट्रभक्ति, समर्पण और एकता का संदेश छिपा है। यही गीत भारत की आत्मा है।