सुप्रीम कोर्ट में इंदौर के एडिशनल DCP और TI ने की बड़ी चूक: आरोपी करण की जगह अनवर बताया, दुष्कर्म की धारा तक जोड़ दी

Indore News :  मध्य प्रदेश की इंदौर पुलिस के दो वरिष्ठ अधिकारियों की भारी लापरवाही सुप्रीम कोर्ट में उजागर हुई है। एडिशनल डीसीपी दिशेष अग्रवाल और चंदननगर टीआई इंद्रमणि पटेल ने शीर्ष अदालत में आरोपी अनवर हुसैन के खिलाफ झूठा हलफनामा पेश कर दिया। जिसमें दूसरे व्यक्ति के केस जोड़ दिए गए थे। इतना ही नहीं, अधिकारियों ने उस पर दुष्कर्म जैसी गंभीर धारा भी लगा दी, जो कि वास्तविक केस से कोई संबंध नहीं रखती थी।

यह मामला सुप्रीम कोर्ट की 4 नवंबर को हुई सुनवाई में सामने आया। अदालत ने इसे नागरिक की स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से जुड़ा गंभीर मामला मानते हुए दोनों अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने पूछा है कि इस लापरवाही पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए। अगली सुनवाई 25 नवंबर को होगी।

गलत हलफनामा और झूठे केस जोड़ने का मामला

दरअसल, आरोपी अनवर हुसैन पिता इशाक हुसैन के जमानत केस में एडिशनल डीसीपी अग्रवाल और टीआई पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में आठ केस दर्ज दिखाए। जबकि जांच में सामने आया कि इन आठ में से चार केसों से अनवर हुसैन का कोई संबंध ही नहीं है। जब कोर्ट ने पूछा कि ऐसा कैसे हुआ, तो अधिकारियों ने जवाब दिया कि “कम्प्यूटर की गलती” से यह गड़बड़ी हो गई।

उन्होंने कहा कि असली आरोपी और एक अन्य व्यक्ति के नाम व उनके पिता के नाम में समानता के कारण यह भ्रम हुआ। हालांकि, अदालत को बताया गया कि असली अनवर हुसैन 60 वर्ष का है और इंदौर का रहने वाला है, जबकि जिन केसों को उसके नाम से जोड़ा गया, वे खरगोन जिले के 32 वर्षीय अनवर खान पिता इशाक खान से संबंधित हैं। दोनों के पते, उम्र और पहचान पूरी तरह अलग हैं।

दुष्कर्म की धारा जोड़ने तक की गलती

सबसे गंभीर चूक तब सामने आई जब पुलिस ने एक चौथे केस में अनवर हुसैन पर दुष्कर्म (धारा 376) जैसी गंभीर धारा लगा दी। दरअसल, यह केस चंदननगर थाने में करण पंवार नाम के युवक पर दर्ज था, जिसमें केवल आर्म्स एक्ट 25 की धारा लगी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे में इसे अनवर हुसैन से जोड़ दिया गया और इसमें दुष्कर्म, धमकी (506) और अन्य धाराएं जोड़ दी गईं।

कोर्ट में यह बात सामने आने पर जजों ने नाराजगी जताई और कहा कि यह “बेहद गंभीर प्रशासनिक लापरवाही” है, जिससे एक निर्दोष व्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती थी।

असल केस – पीडीएस घोटाले से जुड़ा मामला

मूल रूप से यह पूरा प्रकरण आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act) से जुड़ा है। जिला प्रशासन की फूड टीम ने 19 अक्टूबर 2024 को मयूर बाग, जवाहर टेकरी, चंदननगर स्थित एक वेयरहाउस पर छापा मारा था। वहां पीडीएस के गेहूं और चावल का अवैध भंडारण मिला था।

यह वेयरहाउस राजेश पहाड़िया ने किराए पर लिया था। इस मामले में राजेश पहाड़िया, अनवर हुसैन, आसिफ, यश राठौर और संदीप कुमार को आरोपी बनाया गया था। हालांकि, छापे के दौरान अनवर के खिलाफ कोई ठोस सबूत या बिल नहीं मिला।

बाद में पुलिस ने 24 अक्टूबर 2024 को एफआईआर दर्ज की। तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह ने पुराने मामलों का हवाला देते हुए अनवर पर 8 नवंबर 2024 को डिटेंशन ऑर्डर जारी कर दिया। लेकिन हाईकोर्ट ने 24 फरवरी 2025 को यह आदेश क्वैश (रद्द) कर दिया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जहां गलत हलफनामा पेश कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती

जस्टिस सदीप महता और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस प्रकार की लापरवाही न केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न उठाती है। कोर्ट ने दोनों अधिकारियों से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

उच्च पहुंच वाले अधिकारी

एडिशनल डीसीपी दिशेष अग्रवाल पहले देवास और जूनी इंदौर में सीएसपी रह चुके हैं और वर्तमान में इंदौर में एडिशनल डीसीपी के रूप में पदस्थ हैं। वहीं, टीआई इंद्रमणि पटेल राज्यपाल के पूर्व ओएसडी रहे एक आईपीएस अधिकारी के रिश्तेदार बताए जाते हैं। वे पहले लसूडिया और बाणगंगा जैसे प्रमुख थानों में भी पदस्थ रह चुके हैं।

यह मामला केवल एक गलती नहीं, बल्कि पुलिस तंत्र में जवाबदेही की कमी का उदाहरण बन गया है। यदि सुप्रीम कोर्ट में यह सच सामने नहीं आता, तो एक निर्दोष व्यक्ति दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध का आरोपी बनकर जेल में रह जाता। अब अदालत के नोटिस के बाद यह देखना होगा कि इन अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होती है, क्योंकि यह मामला न्याय और प्रशासन — दोनों की साख से जुड़ा है।