देश के शेयर बाजार में लगातार तीसरे दिन गिरावट का दौर जारी है। पिछले तीन कारोबारी सत्रों यानी लगभग 19 घंटों में निवेशकों को करीब 6 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान झेलना पड़ा है। आंकड़ों के अनुसार, सेंसेक्स में 750 से अधिक अंक और निफ्टी में 271 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है।
शुक्रवार को सेंसेक्स ने 640 अंकों की गिरावट के साथ कारोबारी दिन की शुरुआत की थी, जबकि निफ्टी भी 191 अंकों तक लुढ़क गया था। हालांकि दिन के अंत में कुछ रिकवरी देखने को मिली, लेकिन दोनों ही सूचकांक हरे निशान पर बंद नहीं हो पाए।
सेंसेक्स और निफ्टी में तीन दिनों की तेज गिरावट
तीन कारोबारी दिनों में सेंसेक्स ने 762.21 अंक खो दिए हैं। 3 नवंबर को सेंसेक्स 83,978.49 पर बंद हुआ था, जबकि शुक्रवार को यह घटकर 83,216.28 अंक पर पहुंच गया। दिन के दौरान सेंसेक्स 640 अंकों की गिरावट के साथ 82,670.95 अंक तक फिसल गया था। हालांकि सत्र के अंत में थोड़ी रिकवरी के बाद यह 94.73 अंक नीचे बंद हुआ।
वहीं निफ्टी की बात करें तो यह लगातार तीसरे दिन गिरावट के साथ बंद हुआ। शुक्रवार को निफ्टी में 17.40 अंकों की गिरावट दर्ज की गई और यह 25,492.30 अंकों पर आ गया। दिन के कारोबार में यह 191 अंकों तक नीचे जाकर 25,318.45 अंक तक गिर गया था। बीते तीन दिनों में निफ्टी कुल 271.05 अंक फिसल चुका है।
ग्लोबल मार्केट में कमजोरी का असर
शेयर बाजार में हालिया गिरावट की एक बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में आई कमजोरी है। अमेरिकी बाजार वॉल स्ट्रीट पर तेज गिरावट और एशियाई बाजारों में सुस्ती का असर भारतीय बाजारों पर साफ दिखा। जापान का Nikkei और कोरिया का Kospi करीब 2-2 फीसदी टूटे, जबकि वॉल स्ट्रीट में भी लगभग 2 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें घटने और अमेरिकी सरकारी शटडाउन की ऐतिहासिक अवधि बढ़ने से वैश्विक बाजार में अनिश्चितता बढ़ी है। यही कारण है कि निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ और उन्होंने मुनाफावसूली शुरू कर दी।
तकनीकी और कमोडिटी सेक्टर पर दबाव
इस साल की शुरुआत में वैश्विक शेयर बाजारों में तेजी मुख्य रूप से टेक्नोलॉजी कंपनियों के कारण देखने को मिली थी, जो AI (Artificial Intelligence) से जुड़ी उम्मीदों पर आधारित थी। लेकिन भारत में इन क्षेत्रों में मजबूत ग्लोबल कंपनियों की कमी के चलते बाजार इस गति को बनाए नहीं रख सका।
जीक्वांट कंपनी के संस्थापक शंकर शर्मा का कहना है कि दुनिया भर में बाजार की रफ्तार तकनीक और कमोडिटी सेक्टर पर निर्भर है, लेकिन भारत में इन दोनों क्षेत्रों में बड़ी कंपनियों की संख्या कम है। यही कारण है कि भारतीय बाजार अन्य देशों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन कर रहा है।
आर्थिक संकेतक कमजोर, निवेशक हुए सावधान
हालांकि पहली तिमाही में भारत की GDP वृद्धि दर 7.8% दर्ज की गई, लेकिन नॉमिनल GDP की वृद्धि दर घटकर 8.8% रह गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में कम है। यह बताता है कि आर्थिक वृद्धि की रफ्तार में थोड़ी सुस्ती आई है।
इसके अलावा, भारत का सर्विस सेक्टर, जो अगस्त में 15 साल के शिखर पर था, अब 5 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये आंकड़े निवेशकों की चिंता बढ़ा रहे हैं और यही वजह है कि बाजार की तेजी थम गई है। आने वाली 28 नवंबर को जब दूसरी तिमाही के GDP आंकड़े जारी होंगे, तब निवेशकों को आगे की दिशा का अंदाजा होगा।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली से बढ़ा दबाव
विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की लगातार बिकवाली ने भी बाजार पर भारी दबाव डाला है। नवंबर महीने में ही एफआईआई ने 6,214 करोड़ रुपए के शेयर बेच डाले हैं। जुलाई से अब तक विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों में लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपए की बिकवाली कर चुके हैं। डॉलर की मजबूती, रुपए की कमजोरी और अमेरिकी फेड की नीतियों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता ने उनकी धारणा को और कमजोर किया है।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील को लेकर सस्पेंस बरकरार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच दोस्ताना रिश्तों के बावजूद भारत-अमेरिका के बीच संभावित ट्रेड डील अब तक तय नहीं हो पाई है। यह देरी भारतीय बाजार के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। हाल ही में ट्रंप ने कहा था कि इस समझौते पर बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है और वे अगले साल भारत का दौरा कर सकते हैं।
हालांकि जब तक यह समझौता अंतिम रूप नहीं लेता, तब तक निवेशकों के बीच अनिश्चितता बनी रहेगी, जिसका सीधा असर शेयर बाजार की चाल पर देखा जा रहा है।