मां वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज में सीट बंटवारे पर मचा बवाल

जम्मू-कश्मीर के कटरा स्थित श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस (SMVDIME) में एमबीबीएस सीटों के बंटवारे को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। यह संस्थान वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित है और पूरी तरह हिंदू श्रद्धालुओं के दान से स्थापित हुआ है। इसके बावजूद 2025-26 सत्र में लगभग 84 प्रतिशत सीटों पर मुस्लिम छात्रों के चयन की खबर ने विवाद को और गहरा दिया है।

वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन का विरोध और सवाल

वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय अग्रवाल ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे हिंदू आस्था के अपमान के समान बताया। उनका कहना है कि जब यह कॉलेज हिंदू श्रद्धालुओं के सहयोग से बना है, तो यहां पर हिंदू छात्रों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि “मेरिट” के नाम पर चल रहा यह असंतुलन प्रशासनिक अन्याय है, जो हिंदू समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है। अग्रवाल ने कहा कि यदि अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने समुदाय के लिए आरक्षण का अधिकार है, तो वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के इस कॉलेज को भी हिंदू माइनॉरिटी संस्थान का दर्जा मिलना चाहिए।

सरकार से हस्तक्षेप की मांग

संजय अग्रवाल ने लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा और श्राइन बोर्ड प्रशासन से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा कि कॉलेज को हिंदू माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन का दर्जा देकर कम से कम आधी सीटें हिंदू छात्रों के लिए आरक्षित की जानी चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया, तो वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेगा।

काउंसलिंग प्रक्रिया पर उठाए सवाल

अग्रवाल ने यह भी सवाल उठाया कि जब यह कॉलेज BOPEE की आधिकारिक सूची में शामिल ही नहीं था, तो इसके बावजूद काउंसलिंग और प्रवेश प्रक्रिया कैसे पूरी की गई? उन्होंने इसे प्रशासनिक पारदर्शिता के नाम पर बड़ा छल बताया। उनके अनुसार यह केवल सीटों का विवाद नहीं है, बल्कि हिंदू श्रद्धा और सम्मान से जुड़ा प्रश्न है।

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर आस्था से समझौता नहीं

अग्रवाल ने कहा कि मां वैष्णो देवी मंदिर और उससे जुड़ी सभी संस्थाएं हिंदू आस्था की प्रतीक हैं, जिन्हें धर्मनिरपेक्ष प्रयोगशाला में नहीं बदला जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदू समाज अब मौन नहीं रहेगा और यदि श्रद्धालुओं के दान से बने संस्थान में हिंदू छात्रों को ही किनारे किया गया, तो यह विश्वास के साथ बड़ा अन्याय होगा।

अंत में उन्होंने कहा कि यह विरोध केवल एक कॉलेज तक सीमित नहीं रहेगा। यह आंदोलन हिंदू समाज के आत्मसम्मान और धार्मिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की दिशा में पहला कदम है। उनका कहना है कि यह केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि आस्था और पहचान की रक्षा का प्रश्न है।