बिहार चुनाव: योगी की 30 बनाम अखिलेश की 28 रैलियां, क्या UP 2027 के लिए बिछ रही है सियासी बिसात?

Bihar News : बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे भले ही राज्य की नई सरकार तय करेंगे, लेकिन इसकी गूंज पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की सियासत में भी जोरदार तरीके से सुनाई दे रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने बिहार के चुनावी रण में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इसे 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं के बीच शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमाएं आपस में सटी हुई हैं। यूपी के पूर्वांचल के सात जिले बिहार के आठ जिलों से लगते हैं, जहां की बोली, संस्कृति और जातीय समीकरण काफी हद तक एक जैसे हैं। यही वजह है कि बिहार के चुनावी परिणाम का सीधा असर यूपी की राजनीति पर पड़ना तय माना जा रहा है।

योगी का ‘बुलडोजर मॉडल’ और NDA की किलेबंदी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिहार में एनडीए उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने के लिए पिछले 10 दिनों में 30 से ज्यादा जनसभाएं और एक रोड शो किया। अपनी रैलियों में उन्होंने यूपी के ‘बुलडोजर मॉडल’ और माफिया के खिलाफ कार्रवाई का बार-बार जिक्र किया। उन्होंने कानून-व्यवस्था को अपना मुख्य चुनावी हथियार बनाया और इसी के आधार पर वोट मांगे।

दिलचस्प बात यह है कि योगी ने सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि जेडीयू, एलजेपी(आर) और ‘हम’ जैसे सहयोगी दलों के लिए भी प्रचार किया। इसे 2024 लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी से छिटके ओबीसी और दलित वोट बैंक को साधने की एक रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है।

बिना उम्मीदवार उतारे अखिलेश ने झोंकी ताकत

दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी ने बिहार में एक भी सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा, लेकिन पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए 7 दिनों में 28 जनसभाएं कीं। उन्होंने अपनी रैलियों में केंद्र की मोदी सरकार के साथ-साथ यूपी की योगी सरकार पर भी जमकर निशाना साधा।

अखिलेश ने दावा किया कि जैसे 2024 में बीजेपी को यूपी के अवध और अयोध्या में हराया, वैसे ही अब बिहार के मगध में भी हराएंगे। इस अभियान में उन्होंने अपने कई दिग्गज सांसदों और विधायकों को भी उतारा। अफजाल अंसारी, इकरा हसन, अवधेश प्रसाद और राजीव राय जैसे नेताओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की।

ओवैसी फैक्टर को काटने की सपा की रणनीति

2020 के बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में 5 सीटें जीतकर महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया था। इस बार सपा ने ओवैसी के प्रभाव को कम करने के लिए खास रणनीति अपनाई। मुस्लिम युवाओं में लोकप्रिय सांसद इकरा हसन को सीमांचल में प्रचार के लिए भेजा गया ताकि मुस्लिम वोटों का बंटवारा रोका जा सके।

वहीं, गाजीपुर से सपा सांसद अफजाल अंसारी ने ओवैसी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने ओवैसी पर आरएसएस की तरह मुसलमानों को बांटने का आरोप लगाया।

“जितने विधायक ओवैसी साहब के पूरे देश में हैं, उतने ही हमारे परिवार में हैं। ओवैसी वही काम कर रहे हैं, जो आरएसएस कर रही है, मुसलमानों को बांटने का। एक वोट भी गया तो समझो बीजेपी का लाभ होगा।” — अफजाल अंसारी, सपा सांसद

अखिलेश की यह रणनीति बिहार के साथ-साथ यूपी में भी ओवैसी के प्रभाव को रोकने की एक कोशिश है, ताकि 2027 के चुनाव में मुस्लिम वोटों में कोई बिखराव न हो।

यूपी की सियासत पर पड़ेगा असर

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के नतीजे यूपी की भावी राजनीति की दिशा तय करेंगे। अगर बिहार में एनडीए की वापसी होती है तो बीजेपी का मनोबल बढ़ेगा और वह 2027 के लिए नई ऊर्जा के साथ तैयारी करेगी। वहीं, अगर महागठबंधन जीतता है तो अखिलेश यादव और ‘इंडिया’ गठबंधन को यूपी में एक नई संजीवनी मिल सकती है, जो 2027 में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती पेश करेगी।