Bihar News : बिहार की जटिल राजनीति में इस बार मध्य प्रदेश के भाजपा नेताओं की रणनीति और जमीनी सक्रियता ने अहम भूमिका निभाई है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से लेकर भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा तक, इंदौर के इन नेताओं ने बिहार में एनडीए की जीत सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आंकड़ों से पता चलता है कि इनकी चुनावी रणनीति काफी हद तक सफल रही है।
यह परिणाम एक बार फिर साबित करता है कि बिहार में नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रभाव कायम है, लेकिन इस बार भाजपा ने अपनी चुनावी मशीनरी को और मजबूत करने के लिए दूसरे राज्यों के अनुभवी नेताओं को भी मैदान में उतारा था।
मुख्यमंत्री मोहन यादव का शानदार स्ट्राइक रेट
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ. मोहन यादव की लोकप्रियता और सांगठनिक क्षमता का पार्टी ने बिहार में पूरा उपयोग किया। उन्होंने बिहार की 26 लोकसभा सीटों पर चुनावी सभाएं और प्रचार किया। इन 26 सीटों में से 21 पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों (एनडीए) के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। यह लगभग 80% का स्ट्राइक रेट है, जो किसी भी नेता के प्रचार अभियान के लिए एक बड़ी सफलता मानी जाती है।
तेजस्वी के गढ़ में जयपाल सिंह चावड़ा की रणनीति
वहीं, इंदौर के एक और कद्दावर नेता और भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा ने भी बिहार में अपनी सांगठनिक कुशलता का परिचय दिया। संगठन चलाने के अपने लंबे अनुभव का लाभ उठाते हुए उन्होंने एक मुश्किल मोर्चे पर काम किया।
चावड़ा ने विशेष रूप से राजद नेता तेजस्वी यादव के चुनावी क्षेत्र में भाजपा और नीतीश कुमार के पक्ष में प्रचार किया। विपक्ष के एक बड़े नेता के गढ़ में सीधे जाकर प्रचार करना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना था।
चावड़ा और उनकी टीम की यह रणनीति कारगर साबित हुई और इसने साबित किया कि इंदौर के नेताओं द्वारा बनाई गई चुनावी योजनाएं बिहार की जमीन पर भी सफल हो सकती हैं।
भाजपा की माइक्रो-मैनेजमेंट का उदाहरण
बिहार के चुनाव परिणाम यह दर्शाते हैं कि भाजपा अब केवल स्थानीय समीकरणों पर ही निर्भर नहीं है, बल्कि वह दूसरे राज्यों के सफल नेताओं के अनुभव का भी इस्तेमाल कर रही है।
मध्य प्रदेश के नेताओं, विशेषकर मुख्यमंत्री मोहन यादव के ‘यादव’ फैक्टर और जयपाल सिंह चावड़ा के किसान नेता वाली छवि का बिहार में सकारात्मक प्रभाव पड़ा। यह भाजपा की माइक्रो-मैनेजमेंट और अखिल भारतीय चुनावी रणनीति का एक स्पष्ट उदाहरण है।