Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि चुनावी जीत किसी एक लहर पर नहीं, बल्कि कई रणनीतिक पहलुओं के सटीक तालमेल पर निर्भर करती है। एनडीए की शानदार जीत के पीछे महिला मतदाताओं की अभूतपूर्व भागीदारी, एक मजबूत सामाजिक गठबंधन और विपक्ष की कमजोरी जैसे कई अहम कारक रहे।
इस चुनाव का सबसे बड़ा संदेश महिला मतदाताओं ने दिया, जो एनडीए के लिए एक मूक ‘गेमचेंजर’ बनकर उभरीं। राज्य के कई जिलों में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा उत्साह से मतदान किया, जो सीधे तौर पर नतीजों में झलका।
साइलेंट वोटर बनीं महिलाएं, पलटा पूरा खेल
आंकड़े बताते हैं कि सात जिलों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से 14% से भी अधिक रहा। किशनगंज में यह अंतर सर्वाधिक 19.5% था, जबकि मधुबनी में 18.4% और गोपालगंज में 17.72% दर्ज किया गया। अररिया, दरभंगा और मधेपुरा जैसे जिलों में भी यह बढ़त 14% से ज्यादा रही।
इसके अलावा सिवान, पूर्णिया, सीतामढ़ी और पूर्वी चंपारण समेत दस अन्य जिलों में भी महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 10% से अधिक मतदान किया। विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार सरकार की महिला-केंद्रित योजनाएं, जैसे कि जीविका दीदी कार्यक्रम और 10,000 रुपये की नकद सहायता, ने महिलाओं के बीच एक मजबूत विश्वास पैदा किया।
NDA का सधा हुआ जातीय समीकरण
एनडीए ने इस चुनाव में एक बेहद मजबूत सामाजिक और जातीय गठजोड़ बनाया। परंपरागत सवर्ण मतदाताओं के साथ-साथ ओबीसी, ईबीसी और दलित समुदायों का एक बड़ा हिस्सा भी इस गठबंधन के साथ मजबूती से खड़ा रहा। इस व्यापक सामाजिक आधार ने विपक्ष के मुस्लिम-यादव (M-Y) समीकरण को काफी हद तक कमजोर कर दिया और एनडीए को एक निर्णायक बढ़त दिलाई।
कमजोर और बिखरा हुआ महागठबंधन
दूसरी ओर, महागठबंधन एक एकजुट ताकत के रूप में उभरने में नाकाम रहा। कई सीटों पर सहयोगियों के बीच आपसी टकराव और वोट ट्रांसफर में कमी साफ नजर आई। एक स्पष्ट रणनीति के अभाव ने विपक्ष को कमजोर कर दिया, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिला।
महागठबंधन अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोट बैंक को भी पूरी तरह सहेज नहीं पाया। सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के प्रदर्शन ने मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर दिया, जिससे महागठबंधन को अपने ही गढ़ में नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा, यादव वोटों में भी बिखराव देखा गया, जिसका एक हिस्सा आरजेडी से छिटककर दूसरे विकल्पों की ओर चला गया।
बेहतर प्रबंधन और नीतीश का चेहरा
साल 2020 के चुनाव की कमियों से सीखते हुए एनडीए ने इस बार अपने चुनाव प्रबंधन को काफी चुस्त-दुरुस्त किया। बीजेपी, जेडीयू, लोजपा (रामविलास), हम और आरएलएसपी के बीच बेहतर तालमेल ने बूथ स्तर पर अभियान को प्रभावी बनाया।
इसके साथ ही, नीतीश कुमार का चेहरा एक स्थिर और विश्वसनीय नेतृत्व का प्रतीक बना रहा। मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में ‘जंगल राज’ की पुरानी यादें अब भी ताजा हैं, जिसके सामने नीतीश कुमार की छवि एक संतुलित विकल्प के रूप में उभरी। इन सभी कारकों ने मिलकर बिहार में एनडीए की एक बड़ी जीत की पटकथा लिखी।