नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में चुनावी जीत का समीकरण अब विकास, बेरोजगारी और गवर्नेंस जैसे मुद्दों से आगे बढ़कर महिला वोट बैंक पर केंद्रित हो गया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस दल ने महिला मतदाताओं को साध लिया, सत्ता की चाबी उसी के हाथ लगती है। मध्य प्रदेश की ‘लाडली बहना’ जैसी योजनाओं से शुरू हुआ यह ट्रेंड अब देश भर के चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा रहा है।
इस विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस नई चुनावी बिसात की सबसे माहिर खिलाड़ी बनकर उभरी है। पार्टी न केवल सरकारी योजनाओं और खजाने का चुनावी लाभ लेने में आगे है, बल्कि वह चुनावों को एक ‘युद्ध’ की तरह लड़ती है, पर्यटन की तरह नहीं।
बीजेपी की ‘युद्ध’ स्तरीय चुनावी रणनीति
विश्लेषण के अनुसार, बीजेपी किसी भी राज्य के चुनाव को पूरी गंभीरता और आक्रामकता से लेती है। चुनाव की घोषणा से महीनों पहले ही देश भर से पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को उस राज्य में तैनात कर दिया जाता है। ये कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर फीडबैक इकट्ठा कर शीर्ष नेतृत्व को रिपोर्ट भेजते हैं, जिसके आधार पर टिकट वितरण जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं। यह एक ऐसी सूक्ष्म प्रबंधन रणनीति है, जो पार्टी को विरोधियों पर बढ़त दिलाती है।
मोदी-योगी का ब्रांड और शाह की रणनीति
बीजेपी की सफलता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘ब्रांड’ आज भी सबसे बड़ा आकर्षण बना हुआ है। पीएम मोदी अपनी संवाद शैली और मुद्दों को भांपने की क्षमता के कारण जनता के बीच लोकप्रिय हैं। उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है जो सबकी ‘नैया पार’ लगा सकते हैं। वहीं, योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व की पिच पर आक्रामक बल्लेबाजी करते हैं, जिससे उनके समर्थकों का एक बड़ा वर्ग उत्साहित रहता है।
इसके साथ ही, गृह मंत्री अमित शाह की ‘जोड़-तोड़’ की रणनीति को भी पार्टी की सफलता का एक प्रमुख कारण माना जाता है। उनका एकमात्र सिद्धांत किसी भी तरह बहुमत हासिल कर सरकार बनाना है, जिसके लिए वह हरसंभव राजनीतिक समीकरण साधते हैं।
विपक्ष और कांग्रेस की चुनौतियां
इसके ठीक विपरीत, कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की रणनीति कमजोर नजर आती है। विश्लेषण में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की चुनावी यात्राओं को ‘पॉलिटिकल टूरिज्म’ की संज्ञा दी गई है, जहां वे मतदाताओं को केवल ‘दर्शन’ देने जाते हैं। यह भी कहा गया है कि केसी वेणुगोपाल और जयराम रमेश जैसे नेताओं ने एक ऐसा घेरा बना रखा है, जो राहुल गांधी तक जमीनी हकीकत पहुंचने नहीं देता।
कांग्रेस की एक और बड़ी कमजोरी कार्यकर्ताओं की कमी है। पार्टी में नेता तो बहुत हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का अभाव है, जिससे पार्टी का संगठनात्मक ढांचा कमजोर पड़ता है।
बिहार का सबक: महिला वोटर और चिराग की लॉटरी
हाल के चुनावी परिणाम, खासकर बिहार के नतीजे, इस विश्लेषण की पुष्टि करते हैं। बिहार में महिलाओं की लंबी कतारों ने नतीजों को खासा प्रभावित किया। नीतीश कुमार के प्रति लोगों में नाराजगी कम थी और मुस्लिम वोट भी उनके साथ खड़ा रहा। वहीं, तेजस्वी यादव को उनकी पार्टी से जुड़े पुराने ‘गुंडा एलिमेंट’ की विरासत का नुकसान हुआ।
इस चुनावी समीकरण का सबसे बड़ा और अप्रत्याशित लाभ चिराग पासवान को मिला। रिपोर्ट के अनुसार, उनकी पार्टी की सीटें 1 से बढ़कर 21 हो गईं, जिसे एक ‘लॉटरी’ की तरह देखा जा रहा है। यह दिखाता है कि सही रणनीति और समीकरणों के साथ छोटे दल भी बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं। कुल मिलाकर, यह स्पष्ट है कि महिला केंद्रित योजनाएं और आक्रामक चुनावी प्रबंधन ही आने वाले समय में राजनीति की दिशा तय करेंगे।