इंदौर। भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। IIT इंदौर और ISRO के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसा स्वदेशी सेंसर बनाया है, जो अंतरिक्ष के बेहद ठंडे वातावरण में भी काम कर सकता है। यह सेंसर माइनस 270 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी सटीक जानकारी देने में सक्षम है। इस सफलता को ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
अब तक भारत ऐसे अति-संवेदनशील सेंसरों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था। इन्हें आयात करने में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च होती थी। इस स्वदेशी सेंसर के विकास से न केवल यह खर्च बचेगा, बल्कि भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में और भी मजबूत हो जाएगा। यह तकनीक भविष्य के भारतीय अंतरिक्ष अभियानों को नई ताकत देगी।
कैसे काम करता है यह खास सेंसर?
इस सेंसर को तकनीकी भाषा में ‘ट्रांजिशन एज सेंसर’ (TES) बोलोमीटर कहा जाता है। इसका मुख्य काम प्रकाश के सबसे छोटे कण, यानी फोटॉन, का भी पता लगाना है। यह एक अतिचालक (सुपरकंडक्टिंग) पदार्थ से बना होता है, जिसे बेहद कम तापमान पर रखा जाता है।
जब प्रकाश का कोई फोटॉन इससे टकराता है, तो सेंसर का तापमान मामूली रूप से बढ़ जाता है। तापमान में इस बदलाव के कारण इसके प्रतिरोध (resistance) में भी परिवर्तन होता है, जिसे मापकर सटीक डेटा हासिल किया जाता है। यह तकनीक इतनी संवेदनशील है कि यह एक-एक फोटॉन की ऊर्जा को भी माप सकती है।
विकास और सफल परीक्षण
आईआईटी इंदौर के डॉ. अभिनव कुमार और डॉ. देवेश कुमार पाठक के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम ने इसरो के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इस पर काम किया। इस तरह के सेंसर को विकसित करना एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि इतने कम तापमान पर किसी पदार्थ के गुणों को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल होता है।
इस सेंसर को इसरो की प्रयोगशाला में सफलतापूर्वक जांचा गया है। परीक्षणों में इसका प्रदर्शन आयातित सेंसरों के बराबर या उनसे बेहतर पाया गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय वैज्ञानिक अब जटिल तकनीकें देश में ही विकसित करने में पूरी तरह सक्षम हैं।
भविष्य में अंतरिक्ष अभियानों को मिलेगी मजबूती
इसरो भविष्य में इस स्वदेशी सेंसर का इस्तेमाल अपने कई महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियानों में करेगा। इसे अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली दूरबीनों (टेलीस्कोप) और इमेजिंग सिस्टम में लगाया जाएगा। इसकी मदद से ब्रह्मांड के दूर-दराज के हिस्सों से आने वाले धुंधले प्रकाश का भी अध्ययन किया जा सकेगा। इससे खगोल विज्ञान और ब्रह्मांड की समझ को लेकर नई खोजों के रास्ते खुलेंगे। यह सेंसर भारत के आगामी स्पेस मिशनों के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है।