ज़िप-कोडिंग: TikTok पर वायरल हुआ नया डेटिंग ट्रेंड, जानिए कैसे पते और पिन कोड के आधार पर लोग हो रहे रिजेक्ट

डिजिटल दुनिया में डेटिंग के तरीके लगातार बदल रहे हैं और इसी के साथ नए-नए ट्रेंड्स भी सामने आ रहे हैं। ऐसा ही एक नया ट्रेंड है ‘ज़िप-कोडिंग’, जो इन दिनों सोशल मीडिया, खासकर TikTok पर खूब चर्चा में है। यह एक ऐसा चलन है जिसमें लोग किसी व्यक्ति को डेट करने का फैसला उसके घर के पते या इलाके के पिन कोड के आधार पर करते हैं।

इस ट्रेंड के तहत, डेटिंग ऐप्स पर किसी की प्रोफाइल पसंद आने के बाद भी लोग सिर्फ इसलिए उसे रिजेक्ट कर देते हैं क्योंकि वह किसी ‘कम प्रतिष्ठित’ या ‘अनचाहे’ इलाके में रहता है। इसे एक तरह के सामाजिक भेदभाव के रूप में देखा जा रहा है, जहां किसी व्यक्ति के चरित्रや व्यक्तित्व से ज्यादा उसके पते को महत्व दिया जा रहा है।

क्या है ‘ज़िप-कोडिंग’ ट्रेंड?

‘ज़िप-कोडिंग’ शब्द अमेरिका में इस्तेमाल होने वाले ‘ज़िप कोड’ (जैसे भारत में पिन कोड) से बना है। इस ट्रेंड में जब कोई व्यक्ति डेटिंग ऐप पर किसी संभावित पार्टनर से मिलता है, तो वह बातचीत आगे बढ़ाने से पहले उसके इलाके के बारे में जानने की कोशिश करता है। अगर सामने वाले का पता या इलाका उनकी उम्मीदों या सामाजिक के मुताबिक नहीं होता, तो वे उसे बिना कोई कारण बताए रिजेक्ट कर देते हैं।

यह फैसला अक्सर इस धारणा पर आधारित होता है कि एक खास इलाके में रहने वाले लोग एक खास सामाजिक-आर्थिक वर्ग, जीवनशैली या सोच वाले होंगे। इसे कई लोग आधुनिक समय का ‘डिजिटल जातिवाद’ भी कह रहे हैं।

सोशल मीडिया पर क्यों हो रही है इतनी चर्चा?

यह ट्रेंड तब सुर्खियों में आया जब TikTok और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कई यूजर्स ने अपने अनुभव साझा किए। कुछ लोगों ने बताया कि कैसे उन्हें उनके पते की वजह से रिजेक्ट कर दिया गया, जिससे उन्हें काफी अपमानित महसूस हुआ। वहीं, कुछ यूजर्स ने यह भी स्वीकार किया कि वे खुद भी ‘ज़िप-कोडिंग’ करते हैं क्योंकि वे अपने ही जैसे सामाजिक स्तर के व्यक्ति को डेट करना पसंद करते हैं।

इन वीडियोज और पोस्ट्स ने एक बड़ी बहस छेड़ दी है कि क्या डेटिंग में इस तरह की पसंद निजी मामला है या यह एक तरह का भेदभाव है जो समाज में दूरियां बढ़ा रहा है।

क्या यह सिर्फ दूरी का मामला है?

कुछ लोग तर्क देते हैं कि ‘ज़िप-कोडिंग’ का कारण सिर्फ दूरी हो सकती है। वे कहते हैं कि कोई भी ऐसे व्यक्ति को डेट नहीं करना चाहेगा जो बहुत दूर रहता हो, क्योंकि इससे मिलने-जुलने में परेशानी होती है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह सिर्फ दूरी का बहाना है।

अक्सर देखा जाता है कि लोग पास के किसी ‘कम विकसित’ इलाके के व्यक्ति को तो रिजेक्ट कर देते हैं, लेकिन दूर स्थित किसी ‘पॉश’ या महंगे इलाके के व्यक्ति को डेट करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इससे यह साफ होता है कि मामला सिर्फ किलोमीटर का नहीं, बल्कि इलाके से जुड़े ‘स्टेटस’ का है।

एक तरह का सामाजिक भेदभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि ‘ज़िप-कोडिंग’ सिर्फ एक डेटिंग ट्रेंड नहीं, बल्कि एक सामाजिक समस्या का प्रतिबिंब है। यह ठीक वैसा ही है जैसे किसी को उसकी जाति, धर्म या रंग के आधार पर आंकना। यह दिखाता है कि लोग किसी व्यक्ति को जानने-समझने की कोशिश करने के बजाय, उसके बारे में पहले से बनी धारणाओं के आधार पर फैसला ले रहे हैं।

यह चलन न केवल लोगों के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाता है, बल्कि समाज में आर्थिक और सामाजिक आधार पर बनी खाई को और गहरा करता है। डेटिंग का मकसद दो लोगों का एक-दूसरे को समझना होता है, लेकिन ‘ज़िप-कोडिंग’ जैसी प्रथाएं इसे सतही और दिखावे पर आधारित बना रही हैं।