MP का एक ऐसा शहर, जहां रावण को मानते है दामाद, नहीं करते पुतला दहन

Vijayadashami Special : एक तरफ जहां पूरे देश में विजयादशमी के पर्व पर रावण दहन किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में एक शहर ऐसा है, जहां सदियों से रावण की पूजा की जाती है। इस अजब गजब शहर का नाम है, मंदसौर। पौराणिक मान्यता है कि मंदसौर में नामदेव समाज रावण की पत्नी मंदोदरी को सदियों से अपनी बेटी मानते आए है। इस नाते रावण को मंदसौर में दामाद मानते है और दामाद होने के कारण मंदसौर का रावण का ससुराल भी कहते है।

मंदसौर के खानपुरा इलाके में रावण की 41 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। सैकड़ो साल पहले ये प्रतिमा स्थापित की गई थी। दशहरा आने से पहले नगरपालिका रावण की इस प्रतिमा का रंगरोगन करवाती है और दशहरे के दिन सुबह नामदेव समाज के लोग ढोल नगाड़े के साथ आकर रावण की पुजा करते है। नामदेव समाज रावण की विधि-विधान से पुजा करके क्षेत्र की खुशहाली और शहरवासियों को बीमारियों, प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए प्रार्थना करते है।

महिलाएं घुंघट लेकर ही रावण की प्रतिमा के सामने से निकलती है। दशहरे के दिन यहां रावण के 10 सिर नहीं बल्कि 9 सिर ही होते है। दसवें सिर के रूप में रावण के मुख्य सिर पर गधे का सिर लगा दिया जाता है। गधे के सिर को रावण की बुद्धि भ्रष्ट होने का प्रतीक बताया जाता है। इसके साथ ही मंदसौर में लोकमान्यता है कि रावण के दाहिने पैर में कलावा (धागा या लच्छा) बांधने से कई बीमारियों ठीक हो जाती है।

ऐसी भी मान्यता है कि छोटे बच्चे डरते हो तो रावण के पैर में कलावा बांधने से बच्चे डरते नहीं है। मंदसौर के खानपुरा इलाके में रावण का दहन नहीं किया जाता है, बल्कि उसका प्रतीकात्मक रूप से वध किया जाता है। विजयादशमी के दिन सुबह से लेकर शाम तक रावण की प्रतिमा की पूजा-अर्चना की जाती है। शाम के समय जब राम जी की सेना रावण का वध करने आती है, तो वे ढोल-धमाके के साथ प्रतिमा के पास पहुंचते है और वध करने से पहले रावण से क्षमा याचना करते है। मंदसौर में सदियों से रावण की पुजा करने की परंपरा चली आ रही  है।