यह रहा “A Silent Murder of Our Culture!!”
हमारी संस्कृति की एक मौन हत्या!
इस आर्टिकल के माध्यम से नमिता अग्रवाल कहती है कि ……
जब मैंने जीवनसाथी की हत्या से जुड़ा एक लेख पढ़ा, तो मेरे मन में एक गहरी सोच ने जन्म लिया — क्या हम उसी समाज में जी रहे हैं जहाँ हमारे माता-पिता और दादा-दादी ने अपने जीवन साथी के प्रति पूर्ण समर्पण, निष्ठा और प्रतिबद्धता के साथ जीवन बिताया? उन्होंने केवल प्रेम के लिए ही नहीं, बल्कि अपने परिवारों की भलाई के लिए भी हर उतार-चढ़ाव को सहा।
वो निःस्वार्थ भाव, वो गहराई से जुड़ी कर्तव्य भावना कहाँ चली गई?
ये कैसी आधुनिकता है, जहाँ आज की पीढ़ी इंसानियत का मूल भाव ही खोती जा रही है? आज हर चीज़ केवल व्यक्तिगत सुख के इर्द-गिर्द घूमती दिखाई देती है — चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो, चाहे सारी सीमाएँ ही क्यों न लांघनी पड़े। क्या हम इतने आगे बढ़ गए हैं कि करुणा, सहानुभूति और ज़िम्मेदारी को ही भूल बैठे?
बचपन से हमें सिखाया गया है कि कोई भी व्यक्ति परिपूर्ण नहीं होता और हर परिवार को अपनी कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। लेकिन हमें विशेष बनाता है — उन कठिनाइयों का सामना कैसे करते हैं: प्रेम, सहानुभूति और एकता के साथ।
यही वे मूल्य हैं जो कभी हमारे परिवारों को जोड़े रखते थे — हमारी संस्कृति की आत्मा!!