धनतेरस पर होगी कुबेर की अदभूत पूजा, इत्र चढ़ाने पर करते है धनवर्षा

धनतेरस पर धनवंतरी की पूजा के साथ- साथ कुबेर की पूजा करने का भी महत्तव है। इसी के चलते धनतेरस पर उज्जैन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु एक अद्भुत परंपरा निभाने पहुंचेगे। सांदीपनि आश्रम और महाकालेश्वर मंदिर के कोटितीर्थ कुड के समीप स्थित प्राचीन कुबेर प्रतिमा पर विशेष पूजा-अर्चना होगी। परंपरा के अनुसार, इस दिन श्रद्धालु कुबेर की नाभि में इत्र अर्पित कर सुख-समृद्धि और धनवृद्धि की कामना करते हैं।

कोटितीर्थ कुंड के समीप है मंदिर
धनतेरस पर उज्जैन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु एक अद्भुत परंपरा निभाने पहुंचेगे। सांदीपनि आश्रम और महाकालेश्वर मंदिर के कोटितीर्थ कुड के समीप स्थित प्राचीन कुबेर प्रतिमा पर विशेष पूजा-अर्चना होगी। यहां की परंपरा के अनुसार, इस दिन श्रद्धालु कुबेर की नाभि में इत्र अर्पित कर सुख-समृद्धि और धनवृद्धि की कामना करते हैं।

ऐसा है इत्र डालने का महत्व
‘नाभी इत्रं समप्यत, लक्ष्मीकुबेर प्रसीदतु’ का अर्थ है- कुबेर की नाभि में इत्र अर्पण करने से लक्ष्मी और कुबेर दोनों प्रसन्न होते हैं। कथा के अनुसार, भगवान शिव से धन के देवता का पद मिलने पर ब्रह्मा ने कुबेर से पूछा कि धन का संचित स्रोत कहां रहेगा। तब कुबेर ने कहा- मेरा उदर और विशेष रूप से नाभि ही धन का केंद्र होगी। इस पर देवताओं ने उनकी नाभि में इत्र और पुष्प अर्पित कर धन और समृद्धि का आशीर्वाद मांगा। तभी से यह परंपरा प्रचलित हुई कि कुबेर की नाभि में इत्र लगाने से धन का स्थायित्व और शुभ संपत्ति की वृद्धि होती है।

1100 वर्ष पुरानी है प्रतिमा
सांदीपनि आश्रम परिसर में 84 महादेवों में से 40वें क्रम पर स्थित श्री कुण्डेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में यह दुर्लभ कुबेर प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के पुजारी पं. शैलेंद्र व्यास ने बताया कि प्रतिमा में कुबेर बैठे हुए हैं, एक हाथ में सोम पात्र और दूसरा वर मुदा में है। विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद् डॉ. रमण सोलंकी के अनुसार यह प्रतिमा परमारकालीन है और लगभग 1100 वर्ष पुरानी है। प्रतिमा में कुबेर के कंधों पर धन की पोटलियां, उभरा हुआ पेट, तीखी नाक और अलंकारित शरीर उनकी ऐश्वर्यपूर्ण छवि को वर्शाते हैं।

श्रीकृष्ण को मिला ‘श्री’ का वरदान
मान्यता है सांदीपनि आश्रम में शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब गुरु दक्षिणा का समय आया तो देवताओं की ओर से कुबेर धन लेकर आश्रम पहुंचे। यहीं गुरू सांदीपनि ने खजाना लौटा दिया। इसके बाद उन्होने श्रीकृष्ण को आदेश दिया कि वे शंखासुर से उनके पुत्र को मुक्त कराएं। ऐसा करने पर प्रसन्न होकर गुरु-माता ने  श्री प्रदान किया, तभी वे श्रीकृष्ण कहलाए। कहा जाता है कि तभी से कुबेर आश्रम में विराजमान हो गए।