प्रखर वाणी
धरे के धरे रह गए कुलगुरु पद हेतु रुचिकर सारे नाम…सिंघई जी को मिल गया महामहिम का इनाम…शिक्षाविदों को मिल गया फिर एक पैगाम…भाग्यशाली को ही मिलती है कुर्सी चाहे जैक चले या नाम…फिर स्थानीय नामों को तरजीह दिए बगैर बाहर से उच्च शिक्षा के पवित्र मंदिर को सजाया गया…मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी औद्योगिक व शैक्षणिक नगरी में अनुभवी शिक्षाविद को बुलाया गया…अब वो देवी अहिल्या की नगरी में उनके नाम से संचालित विश्वविद्यालय की बागडौर संभालेंगे…
अपनी प्रशासकीय दक्षता से पुनः सितारों का दर्जा मिले ऐसा फरमान निकालेंगे…महिला कुलगुरु के बाद पुरुष कुलगुरु की नियुक्ति बेशक अहम होगी…कठोर व लचीले निर्णय में समन्वय से नीति कभी नहीं बेदम होगी…इतने सारे विभागों और परिक्षेत्र में आने वाले महाविद्यालयों को अपना नया मुखिया मिल गया…जिनके नाम नहीं चल पाए और अटक गए राजनीतिक भीड़ में उनका चेहरा खिल गया…विश्वविद्यालय में परीक्षा व परिणाम सबसे बड़ी चुनौती है…अपना सम्पूर्ण विवेक लगा सकते हैं मुखिया जब सत्र के शुरुआत में नियुक्ति होती है…दे.अ.वि.वि.के विभाजन के बाद पहली बार नया कुलगुरु आएगा…
अपने कौशल से वो सीमित दायरे वाले परिक्षेत्र को सर्वोत्तम आइना दिखायेगा…एक चुनौती नेक में उन्नत ग्रेड प्राप्त करना भी है…सीईयूटी के सफल क्रियान्वयन हेतु टीम गठित करना भी है…सारे विभागों में क्रियाशील अनुभवियों से परिचय एवं उनका सदुपयोग भी एक आर्ट है…कुलगुरु की सफलता के पृष्ठ में दबा ये भी एक पार्ट है…शोध और तकनीकों की महत्ता को जानकर तरक्की का शिखर छूना भी जरूरी है…कर्मचारी व अधिकारी की समस्याओं का माकूल समाधान भी मजबूरी है…छात्र राजनीति को संतुष्टि व संवाद के जरिये सम्मान देना…
कार्यपरिषद के आगंतुक सदस्यों को पर्याप्त मान देना…छात्र कल्याण के विभिन्न आयामों पर चिंता व चिंतन होना…युवा उत्सव और खेल प्रतिभाओं की जरूरतों पर मनन होना…ऐसे अनेक कार्यों के साथ देअविवि की बागडौर सम्भालिए नव अभ्यागत…यहां के विद्यार्थी – प्राध्यापक व शिक्षाप्रेमी पलक पावडे बिछाकर करते हैं आपका स्वागत…