Dewas News : देवास जिले से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। जिसने प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सूत्रो के अनुसार बताया जा रहा है देवास जिले के वर्तमान अपर कलेक्टर शोभाराम सिंह सोलंकी ने अपने पूर्व कार्यकाल में एक आदिवासी विधवा महिला पवित्रा बाई सिसोदिया की 32 बीघा जमीन अपनी पत्नी के नाम पर दर्ज करवा ली।
पीड़िता तीन साल से न्याय के लिए दर-दर भटक रही है, लेकिन अब तक न तो कोई कार्रवाई हुई, न ही जांच शुरू की गई।
जमीन पर कब्जे का आरोप
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2023 में जब शोभाराम सिंह सोलंकी बागली के एसडीएम पद पर पदस्थ थे, तब उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पवित्रा बाई और उनके बेटों मनीष व रोहित सिसोदिया की जमीन अपनी पत्नी कमलाबाई सोलंकी के नाम पर ट्रांसफर करवा ली। आरोप है कि इस रजिस्ट्री में न सिर्फ जालसाजी की गई, बल्कि फर्जी फोटो लगाकर किसी दूसरी महिला को “पवित्रा बाई” दिखाया गया।
पीड़िता का कहना है कि जब उन्होंने अपनी जमीन पर खेती करने की कोशिश की, तो उन्हें रोक दिया गया। तब जाकर उन्हें रजिस्ट्री में हुए फर्जीवाड़े का पता चला। पवित्रा बाई का कहना है, “हमारे नाम की जमीन किसी और के नाम कर दी। फोटो भी किसी दूसरी औरत की लगा दी गई। हमने न्याय के लिए हर जगह गुहार लगाई, लेकिन हमें सिर्फ धमकियां मिलीं।”
पुलिस और प्रशासन की बेरुखी
पीड़िता ने इस मामले की शिकायत हाटपीपल्या थाने में की, साथ ही 181 सीएम हेल्पलाइन और जनसुनवाई पोर्टल पर भी आवेदन दिया। बावजूद इसके न तो एफआईआर दर्ज की गई, न कोई विभागीय जांच शुरू हुई। पीड़िता का आरोप है कि जब उन्होंने जमीन वापस देने की बात की, तो सोलंकी ने उन्हें धमकाया — “चुप रहो, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।”
कलेक्टर का चौंकाने वाला बयान
वहीं ये मामला तब उजागर हुआ जब पीड़ित महिला अपनी फरियाद लेकर कलेक्टर के पास पहुंची। इस मामले पर जब देवास कलेक्टर ऋतुराज से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, “ये तीन साल पुराना मामला है। अब जाकर कोई खड़ा हो जाए तो हम क्या कर सकते हैं? यह सिविल मामला है, हमारे यहां कोई जांच नहीं चल रही।” कलेक्टर का यह बयान न केवल पीड़िता के दर्द को बढ़ाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सिस्टम में संवेदनशीलता की कितनी कमी है।
न्याय की आखिरी उम्मीद मुख्यमंत्री से
पवित्रा बाई और उनके बेटे अब मुख्यमंत्री मोहन यादव से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है, “अगर मुख्यमंत्री ने भी मदद नहीं की, तो हम न्याय की उम्मीद हमेशा के लिए खो देंगे।”
यह मामला सिर्फ एक जमीन हड़पने का नहीं, बल्कि प्रशासनिक शक्ति के दुरुपयोग और न्यायिक लापरवाही की मिसाल बन चुका है। जब एक अफसर के खिलाफ शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती है और कलेक्टर इसे “तीन साल पुराना मामला” कहकर टाल देते हैं, तो सवाल उठता है — क्या मध्यप्रदेश में कानून अब केवल अमीरो के लिए रह गया है क्या किसी गरीब की फरियाद नहीं सुनी जाएगी?
अगर इस मामले में मुख्यमंत्री ने सख्त कार्रवाई नहीं की, तो ये संदेश जाएगा कि प्रदेश में अब न्याय नहीं, बल्कि कुर्सी और रसूख का राज चलता है। पवित्रा बाई की ये लड़ाई अब केवल उनकी जमीन की नहीं, बल्कि उस सिस्टम से न्याय पाने की है, जिसने उन्हें वर्षों से नजरअंदाज किया है।