मुख्यमंत्री नीतीश : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उपराष्ट्रपति बनने की चर्चा नई नहीं है। 2020 विधानसभा चुनाव के बाद भी यह बात उठी थी जब उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर आई थी। अब फिर से यह चर्चा इसलिए तेज़ हो गई है क्योंकि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया है और बिहार में चुनाव का माहौल गरम है। हालांकि यह सिर्फ अटकलें हैं, क्योंकि इसमें कई ‘लेकिन’ और ‘अगर-मगर’ शामिल हैं। आइए समझते हैं कि इसमें कितनी सच्चाई है।
बिहार विधानमंडल में कौन किसके साथ?
उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे की खबर आते ही बिहार की राजनीति में हलचल मच गई। विधानसभा सत्र चल रहा है, इसलिए चर्चा सदन और उसके आसपास ही हो रही है। विपक्ष का कहना है कि नीतीश कुमार को किनारे करने की योजना हो सकती है। सत्ता पक्ष कह रहा है कि ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन अगर बिहार से कोई उपराष्ट्रपति बनता है तो खुशी की बात होगी। भाजपा विधायक बचौल के बयान से यह चर्चा और तेज़ हो गई।
पहले बिहार चुनाव, उपराष्ट्रपति चुनाव फिलहाल टलता दिख रहा
संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक, उपराष्ट्रपति का चुनाव तुरंत जरूरी नहीं है। दूसरी ओर, बिहार में चुनाव करीब हैं और 20 नवंबर तक नई सरकार बननी है। अब सिर्फ लगभग 90 दिन बचे हैं। ऐसे में बीजेपी नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाकर बिहार से बाहर भेजने का जोखिम नहीं उठाएगी। अगर पार्टी को बिहार में अच्छा प्रदर्शन करना है, तो अभी ऐसा कोई फैसला लेना सही नहीं होगा। इसलिए यह समय उपराष्ट्रपति चुनाव का नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति का है।
भाजपा-जदयू नेताओं में खटपट?
उपराष्ट्रपति के इस्तीफे का समय थोड़ा अलग है, इसलिए नीतीश कुमार का नाम चर्चा में है। इसी दौरान एनडीए की बैठक में जदयू नेता अशोक चौधरी और भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा के बीच बड़ी तकरार की खबर आई। दोनों दलों ने इसे खुलकर नहीं बताया। बाद में अशोक चौधरी ने नीतीश कुमार की तारीफ की, फिर विजय सिन्हा ने भी सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में पोस्ट किया। विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसी बहस गठबंधन में आम है, लेकिन BJP को सतर्क रहना चाहिए।
अगर नीतीश जाएं दिल्ली, तो बिहार की राजनीति में कौन जीतेगा
बिहार चुनाव करीब हैं, इसलिए बीजेपी अभी चेहरा बदलने का जोखिम नहीं उठाएगी। 2025 में भी जब जदयू छोटी पार्टी बनी थी, तब भी ऐसा नहीं किया गया था। नीतीश के जाने से बीजेपी को फायदा मिलेगा, इसकी गारंटी नहीं है। सीएम पद के लिए नया चेहरा लाना आसान होगा, लेकिन विपक्ष को “कमज़ोर मुख्यमंत्री” कहने का मौका नहीं मिलेगा। नीतीश जाएं तो उन्हें विकासशील नेता के रूप में याद किया जाएगा। फिलहाल चुनाव से पहले ऐसा कोई बदलाव नहीं होगा।