कल से लगेगा कामाख्या मंदिर में अंबुबाची मेला, जानें क्यों है ये इतना खास

असम के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या देवी मंदिर हिंदू धर्म के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर देवी शक्ति की उपासना का एक प्रमुख केंद्र है और यहां प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां देवी के योनि रूप की पूजा की जाती है, जो सृजन और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है।

क्या है अंबुबाची मेला?

कामाख्या मंदिर में हर साल जून के महीने में अंबुबाची मेले का आयोजन होता है, जिसे देवी के वार्षिक मासिक धर्म चक्र के प्रतीक रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दौरान देवी स्वयं रजस्वला होती हैं और यह समय उनके विश्राम का काल माना जाता है। इसी कारण मंदिर के गर्भगृह के द्वार तीन दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं और पूजा-पाठ व दर्शन बंद कर दिए जाते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक और तांत्रिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

2025 में अंबुबाची मेला कब लगेगा?

वर्ष 2025 में अंबुबाची मेला 22 जून से 26 जून तक आयोजित किया जाएगा। 22 जून को मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे, जो देवी के मासिक धर्म की शुरुआत को दर्शाता है। 25 जून को कपाट पुनः खोले जाते हैं, और 26 जून को विशेष शुद्धि पूजा के साथ देवी को स्नान कराया जाता है। इस दिन से भक्तों को फिर से दर्शन की अनुमति मिलती है।

अंबुबाची मेला देवी के विश्राम का समय होता है। इस दौरान मंदिर में किसी भी प्रकार की पूजा या धार्मिक क्रिया नहीं होती। तीन दिन बाद जब देवी को शुद्धि स्नान कराया जाता है, तो इसे देवी के पुनर्जागरण का प्रतीक माना जाता है। इस प्रक्रिया के साथ भक्तों के लिए मंदिर के कपाट पुनः खोल दिए जाते हैं और विशेष अनुष्ठान के साथ पूजन होता है।

अंबुबाची मेला में मिलने वाले प्रसाद की विशेषता

अंबुबाची मेले के दौरान मिलने वाला प्रसाद भी अत्यंत खास माना जाता है। मान्यता है कि गर्भगृह में देवी के समीप रखा गया सफेद वस्त्र, देवी के रजस्वला होने के बाद लाल रंग में परिवर्तित हो जाता है। यही वस्त्र भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है, जिसे अत्यंत पवित्र और चमत्कारी माना जाता है।

अंबुबाची मेला तांत्रिक साधकों के लिए भी एक विशेष अवसर होता है। इस दौरान देश-विदेश से अनेक तांत्रिक और साधक गुप्त साधनाओं के लिए कामाख्या मंदिर पहुंचते हैं।