सनातन धर्म में पेड़-पौधों की भी पूजा का महत्व है. उन्हें भगवान स्वरूप माना गया है. हर पेड़ की पूजा का अलग महत्व और विधान है. आंवला के पेड़ (Amla Tree) की भी पूजा इसमें शामिल है. मान्यता है कि आंवले के पेड़ में भगवान श्रीहरि विष्णु (Lord Vishnu) वास करते हैं. इसलिए इस पेड़ की विशेष तौर पर पूजा की जाती है।आंवले की पूजा करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। हिंदू धर्म में आंवला पूजा के लिए विशेष समय और दिन निर्धारित हैं, जैसे आंवला एकादशी और आंवला नवमी।
आंवले की पूजा निम्नलिखित समय पर नहीं करनी चाहिए:
1. अमावस्या (नया चाँद का दिन): इस दिन आंवले की पूजा करना सही नहीं माना जाता है।
2. पूर्णिमा (पूर्ण चाँद का दिन): पूर्णिमा के दिन भी आंवले की पूजा से बचना चाहिए।
3. रात्री का समय: पूजा सामान्यतः दिन के समय की जाती है। रात्री के समय पूजा से बचना चाहिए।
4. विशेष दिनों के साथ मेल: किसी विशेष व्रत, जैसे नवरात्रि या कुछ अन्य प्रमुख त्योहारों पर आंवले की पूजा से बचना चाहिए, ताकि पूजा का असर विशेष समय पर ध्यान केंद्रित हो सके।
इन नियमों का पालन करने से पूजा का प्रभाव और समर्पण सही तरीके से किया जा सकता है।
आंवले के पेड़ की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए
आंवले के पेड़ की परिक्रमा करते समय आमतौर पर निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाता है:
1. तीन बार परिक्रमा: आंवले के पेड़ की परिक्रमा करने का सामान्य नियम है कि तीन बार परिक्रमा की जाए। यह माना जाता है कि तीन बार परिक्रमा करने से व्यक्ति के पाप समाप्त होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
2. सात बार परिक्रमा: कुछ मान्यताओं के अनुसार, विशेष अवसरों या व्रतों के दौरान सात बार परिक्रमा की जाती है, जो अधिक पुण्यकारी मानी जाती है।
इन परिक्रमा नियमों का पालन करके आंवले के पेड़ की पूजा करने से आस्था और समर्पण के साथ पूजा की जाती है।