दिल्ली-NCR के आवारा कुत्तों पर आज होगी अहम सुनवाई, फैसला तय करेगा राहत मिलेगी या शेल्टर होम का रास्ता

शुक्रवार यानी 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्तों को लेकर बड़ा फैसला सुना सकता है। 11 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिल्ली और आसपास के सभी क्षेत्रों में मौजूद आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से ‘डॉग शेल्टर्स’ में रखा जाए। इस पर जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने 14 अगस्त को सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब संभावना जताई जा रही है कि आज इस मामले में अंतिम निर्णय सुनाया जाएगा।

कोर्ट के पहले आदेश और उठे सवाल

सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने 11 अगस्त को अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि वे ‘यथाशीघ्र’ सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को पकड़कर डॉग शेल्टर होम्स में भेजें। अदालत का कहना था कि इससे सड़कों पर सुरक्षा से जुड़ी घटनाओं को रोका जा सकेगा। हालांकि, इस आदेश के तुरंत बाद ही डॉग लवर्स और एनिमल वेलफेयर संगठनों ने विरोध जताया। उनका कहना था कि यह फैसला पशु अधिकारों का हनन है और इससे हजारों कुत्तों को नुकसान पहुंचेगा। इसके खिलाफ कई याचिकाएँ दायर हुईं, जिनकी सुनवाई 14 अगस्त को तीन जजों की बेंच ने की थी।

दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध दिल्ली की सड़कों पर भी दिखा। एनिमल लवर्स और डॉग प्रोटेक्शन ग्रुप्स ने अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शन किए। सोमवार देर रात कनॉट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर में लगभग 200 कार्यकर्ता एकत्र हुए और ‘आवारा नहीं, हमारा है’ जैसे नारों के साथ हनुमान चालीसा का पाठ किया। इसके बाद समूह बंगला साहिब गुरुद्वारा की ओर कूच किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें प्रवेश करने से पहले ही रोक दिया। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि लगातार विरोध-प्रदर्शन से वे थक चुके हैं, इसलिए अब वे भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि उन्हें इस संघर्ष में शक्ति मिले।

पिछली सुनवाई में कोर्ट की सख्त टिप्पणी

14 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मुद्दे पर नाराज़गी जताई थी। जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा था कि “संसद नियम और कानून तो बनाती है, लेकिन उनका पालन नहीं होता। एक ओर इंसान पीड़ित हैं और दूसरी तरफ पशु प्रेमी अदालत में खड़े होकर अपनी बातें रख रहे हैं।” अदालत ने साफ कहा था कि जिन्होंने भी हस्तक्षेप याचिकाएँ दायर की हैं, उन्हें अपने दावों को साबित करने के लिए हलफनामे और सबूत पेश करने होंगे। कोर्ट का रुख यह था कि इस विवाद में जिम्मेदारी लेने की ज़रूरत है, ताकि इंसानों और जानवरों दोनों की सुरक्षा और अधिकारों का संतुलन बना रहे।