Mumbai News : ऑस्कर विजेता संगीतकार ए आर रहमान ने हाल ही में अपने आध्यात्मिक सफर और सूफीवाद अपनाने को लेकर खुलकर बात की है।
निखिल कामथ के पॉडकास्ट पर उन्होंने बताया कि आखिर क्यों उन्होंने और उनके परिवार ने सूफी इस्लाम को अपनाया। रहमान का जन्म एक हिंदू परिवार में दिलीप कुमार के रूप में हुआ था, लेकिन बाद में उन्होंने अपना धर्म और नाम दोनों बदल लिए।
रहमान ने इस बातचीत में बताया कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और उन्होंने हिंदू, ईसाई और इस्लाम धर्म का अध्ययन किया है। उन्होंने कहा कि उनका संगीत मंच किसी तीर्थ की तरह है, जहां अलग-अलग धर्म और भाषा के लोग एक साथ आकर एकता का जश्न मनाते हैं।
‘धर्म के नाम पर हत्या से मुझे समस्या है’
रहमान ने धर्म को लेकर अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उन्हें किसी भी धर्म से कोई समस्या नहीं है, लेकिन जब धर्म के नाम पर किसी की हत्या की जाती है या उसे नुकसान पहुंचाया जाता है, तो यह उन्हें परेशान करता है।
“मैं सभी धर्मों का प्रशंसक हूं। मेरी एक ही समस्या है, जब कोई धर्म के नाम पर किसी दूसरे को मारता या नुकसान पहुंचाता है। मुझे मनोरंजन करना पसंद है, और जब मैं मंच पर होता हूं, तो वह जगह एक तीर्थ की तरह लगती है, जहां हम सब एकता का आनंद लेते हैं।” — ए आर रहमान
उन्होंने बताया कि कैसे संगीत के जरिए वह लोगों को जोड़ते हैं, भले ही वे किसी भी पृष्ठभूमि से आते हों।
सूफीवाद का असल मतलब
सूफीवाद की ओर अपने झुकाव का कारण बताते हुए रहमान ने इसकी गहरी फिलॉसफी को समझाया। उन्होंने कहा कि यह रास्ता आत्म-चिंतन और खुद को मिटाने का है ताकि ईश्वर को पाया जा सके।
“सूफीवाद मरने से पहले मरने जैसा है। कुछ पर्दे होते हैं जो आपको आत्मचिंतन पर मजबूर करते हैं, और उन पर्दों को हटाने के लिए आपको नष्ट होना पड़ता है। वासना, लालच, ईर्ष्या या निंदा, इन सभी को मरना होता है। आपका अहंकार चला जाता है, और फिर आप ईश्वर की तरह पारदर्शी हो जाते हैं।” — ए आर रहमान