बचपन में पेट में कीड़े होना एक आम समस्या है, जिससे अधिकतर बच्चे किसी न किसी दौर में गुजरते हैं। यह समस्या तब पैदा होती है जब शरीर में पैरासाइट्स (परजीवी) प्रवेश कर जाते हैं और आंतों में पनपने लगते हैं। यह कीड़े आंतों की दीवारों और गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट में मौजूद होते हैं और शरीर के पोषक तत्वों को चुरा लेते हैं। बच्चों में यह समस्या अधिक पाई जाती है क्योंकि उनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है और वे अक्सर बिना हाथ धोए खाना खा लेते हैं या मिट्टी से खेलने के बाद हाथ मुंह में डालते हैं।
मुख्य कारण: साफ-सफाई की कमी और दूषित पानी
पेट में कीड़े होने के पीछे सबसे बड़ा कारण स्वच्छता की कमी होता है। बच्चों का खुले में खेलना, गंदा पानी पीना या फिर नाखूनों में जमी गंदगी से कीड़े शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। WHO के मुताबिक, विश्व की लगभग 24% जनसंख्या को मिट्टी से होने वाले इंफेक्शन से कीड़े होने की समस्या होती है, जो साफ-सफाई की स्थिति को दर्शाता है।
आंतों में पाए जाने वाले आम कीड़े
बच्चों के पेट में जो कीड़े पनपते हैं, वे मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं –
- पिनवर्म
- राउंडवर्म
- टेपवर्म
- व्हिपवर्म और फ्लूक्स
यदि समय रहते इस समस्या का समाधान न किया जाए, तो यह बच्चों की ग्रोथ और हेल्थ को प्रभावित कर सकती है।
पेट में कीड़ों से होने वाली समस्याएं
डॉक्टर्स के अनुसार, पेट के कीड़े शरीर के ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं और पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेते हैं। इससे बच्चों में प्रोटीन और आयरन की कमी हो जाती है। हुकवर्म जैसे कीड़े लंबे समय तक आंतों से खून चूसते रहते हैं, जिससे एनीमिया जैसी समस्या हो सकती है। इसके साथ ही शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता और थकावट जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
जानिए पेट में कीड़े होने के लक्षण
पेट दर्द और मरोड़
पेट में कीड़े होने पर बच्चे को नाभि के आसपास दर्द या मरोड़ महसूस होती है। यह एक सामान्य लक्षण है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
पाचन तंत्र का गड़बड़ होना
बार-बार दस्त लगना या कब्ज बने रहना भी इस समस्या की ओर इशारा करता है। पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है और खाना पचने में परेशानी होती है।
भूख में असामान्यता
पेट में कीड़े होने पर बच्चे को या तो अत्यधिक भूख लगती है या बिल्कुल भूख नहीं लगती। यह भी एक बड़ा संकेत हो सकता है।
नींद में खलल
रात के समय बच्चे की नींद बार-बार टूटना, चौंककर उठ जाना या बेचैनी महसूस करना भी पेट के कीड़ों की वजह से हो सकता है।
वजन में गिरावट
भले ही बच्चा सामान्य से ज्यादा खा रहा हो, फिर भी उसका वजन लगातार घट रहा हो, तो समझें कि उसके शरीर को पोषण नहीं मिल रहा। यह पोषक तत्व कीड़ों द्वारा अवशोषित किए जाने के कारण होता है।
पेट का आकार फूलना
कई बार बच्चों का पेट सामान्य से अधिक बाहर निकल आता है, जिसे हम “फूला हुआ पेट” कहते हैं। यह भी कीड़ों की निशानी हो सकती है।
चिड़चिड़ापन और थकावट
बच्चा अगर हर वक्त थका-थका सा महसूस करता है, खेलने में मन नहीं लगाता, जल्दी चिढ़ जाता है तो यह संकेत भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
मल में कीड़े दिखना और खुजली
कई मामलों में मल में छोटे सफेद कीड़े साफ दिखाई देते हैं। इसके साथ ही एनल एरिया यानी गुदा के आसपास लगातार खुजली होना भी एक बड़ा संकेत है। अगर बच्चा रात को बार-बार उठकर उस हिस्से को खुजलाता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
कैसे करें बचाव? कुछ जरूरी उपाय
दो साल से ऊपर के बच्चों को हर 6 महीने में डी-वॉर्मिंग (de-worming) की दवा दी जानी चाहिए। इसके अलावा नीचे दिए गए उपायों को अपनाकर इस समस्या से बचा जा सकता है:
- बच्चों को हमेशा हाथ धोने की आदत डालें, खासकर खाने से पहले और शौच के बाद।
- नाखूनों को छोटा और साफ रखें ताकि गंदगी जमा न हो।
- उबला या फिल्टर किया हुआ पानी ही पिएं।
- बाहर का खाना बच्चों को न दें।
- फल और सब्जियों को अच्छी तरह धोकर ही परोसें।
- बच्चों को नंगे पैर खेलने से रोकें, खासकर मिट्टी या गीली जगहों पर।
- घर और आसपास की सफाई पर विशेष ध्यान दें।
दवा का उपयोग, लेकिन डॉक्टर की सलाह से
डी-वॉर्मिंग के लिए आमतौर पर Albendazole (एल्बेंडाजोल) नाम की दवा दी जाती है, लेकिन यह कब, कितनी मात्रा में और कैसे दी जाए, इसके लिए चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है। खुद से दवा देने से बचें।