मध्य प्रदेश की सियासत में उस वक्त नया मोड़ आ गया, जब भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने पद संभालते ही कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। कार्यकर्ताओं के बीच जोशीले अंदाज़ में खंडेलवाल ने एलान किया कि “मैं आम कार्यकर्ता हूं, और भाजपा में योग्यता के आधार पर जिम्मेदारी दी जाती है। अब हमें मिलकर नया इतिहास रचना है।”
लेकिन खंडेलवाल यहीं नहीं रुके उन्होने कांग्रेस को सीधी चुनौती देते हुए कहा कि, –जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कराया है, वैसे ही कांग्रेस पार्टी सिर्फ पार्षद का ही चयन करके दिखा दे।
कांग्रेस में भी हलचल तेज
बीजेपी के इस आक्रामक तेवरों के बीच मध्य प्रदेश कांग्रेस भी खुद को सशक्त करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है। सूत्रों के अनुसार, जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते में नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति होने जा रही है। इसके लिए पैनल दिल्ली पहुंच चुके हैं और कांग्रेस हाईकमान की मुहर का इंतज़ार है।
गुजरात मॉडल पर होगा संगठन का कायाकल्प
मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि इस बार कांग्रेस गुजरात की तर्ज पर संगठन को नए सिरे से गढ़ने जा रही है। यानी पुराने चेहरों के साथ-साथ जमीनी, ऊर्जावान और आक्रामक नेताओं को तरजीह मिलेगी। खासकर उन्हें जो जनता से सीधे जुड़े हैं और सरकार के खिलाफ मुखर रहते हैं।
25% चेहरों की हो सकती है वापसी
फिलहाल प्रदेश में 70 संगठनात्मक जिले हैं। जिनमें 55 शहरी और 15 ग्रामीण शामिल हैं। हर जिले में दो-दो जिलाध्यक्षों की नियुक्ति होती है। इस समय 5 जिलों में पद खाली हैं, जिनकी नियुक्ति प्राथमिकता में है। वहीं बाकी 65 में से करीब 16 जिलाध्यक्षों की वापसी लगभग तय मानी जा रही है। यानी करीब 25% पुराने चेहरों को फिर से मौका मिलने की प्रबल संभावना है।
राजनीतिक गलियारों में बढ़ी हलचल
हेमंत खंडेलवाल के आक्रामक अंदाज़ और कांग्रेस के संगठनात्मक बदलावों ने राज्य की राजनीति में नई सरगर्मी ला दी है। अब देखना ये होगा कि कांग्रेस हेमंत की चुनौती का किस अंदाज़ में जवाब देती है कि क्या कांग्रेस सच में पार्षद का चुनाव करवा पाएगी? या फिर भाजपा की यह चुनौती सियासी बढ़त में तब्दील हो जाएगी?