Ashutosh Gowariker: भारतीय सिनेमा में कुछ नाम ऐसे हैं, जो अपनी अनूठी कहानी कहने की शैली और सिनेमाई दृष्टिकोण के लिए हमेशा याद किए जाते हैं। आशुतोष गोवारीकर उनमें से एक हैं। उनकी फिल्म ‘लगान’ (2001) ने न केवल भारतीय दर्शकों का दिल जीता, बल्कि ऑस्कर नामांकन तक का सफर तय किया। लेकिन हाल ही में, जब उनसे पूछा गया कि ‘लगान’ के बाद वह ‘कम दिखाई देते हैं,’ तो उनके जवाब ने सभी को हैरान कर दिया। आशुतोष ने हंसते हुए कहा, “कम दिखाई देता हूँ? अरे, लोग तो कहते हैं कि ‘हम दिल दे चुके सनम’ भी मेरी फिल्म है!”
Ashutosh Gowariker का मजाकिया अंदाज़
यह मजेदार जवाब न केवल उनकी हाजिरजवाबी को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि आशुतोष अपनी कला को कितनी सहजता से लेते हैं। दरअसल, ‘हम दिल दे चुके सनम’ (1999) संजय लीला भंसाली की फिल्म थी, और आशुतोष का यह कहना महज एक मजाक था, जो उनके आत्मविश्वास और हल्के-फुल्के अंदाज़ को दर्शाता है। लेकिन इस जवाब के पीछे एक गहरी बात भी छिपी है। आशुतोष उन फिल्मकारों में से हैं, जो क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी पर ध्यान देते हैं। उनकी फिल्में कम हो सकती हैं, लेकिन हर फिल्म एक कहानी, एक विचार और एक दृष्टिकोण लेकर आती है।
Ashutosh Gowariker: ‘लगान’ के बाद का सफर
‘लगान’ के बाद आशुतोष ने कई उल्लेखनीय फिल्में दीं, जिनमें ‘स्वदेस’ (2004), ‘जोधा अकबर’ (2008), और ‘मोहनजोदड़ो’ (2016) शामिल हैं। उनकी हर फिल्म में एक अलग तरह की कहानी और सामाजिक संदेश होता है। ‘स्वदेस’ ने देशभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी की बात की, तो ‘जोधा अकबर’ ने इतिहास और प्रेम को एक अनूठे अंदाज़ में पेश किया। उनकी फिल्म ‘पानीपत’ (2019) ने मराठा साम्राज्य की वीरता को दर्शाया।
आलोचकों का कहना है कि आशुतोष की फिल्में कमर्शियल सिनेमा के दायरे में फिट नहीं होतीं, क्योंकि वह मनोरंजन के साथ-साथ गहरे सामाजिक और ऐतिहासिक मुद्दों को छूते हैं। शायद यही कारण है कि उनकी फिल्में हर साल रिलीज नहीं होतीं, और लोग उन्हें ‘कम दिखाई देने’ का तमगा दे देते हैं। लेकिन आशुतोष का मानना है कि एक कहानी तब तक नहीं बननी चाहिए, जब तक वह दिल को न छुए।