इस शिवलिंग के आगे औरंगजेब को भी झूकना पड़ा, जानिए ग्वालियर के कोटेश्वर महादेव मंदिर की कहानी

Koteshwar Mahadev Gwalior : आज श्रावण महीने का दूसरा सोमवार है। ग्वालियर किले के तलहटी में स्थित प्रसिद्ध कोटेश्वर महादेव मंदिर में आज सुबह से भक्तो की भीड़ उमड़ रही है। कोटेश्वर महादेव मंदिर से भक्तो की गहरी आस्था जुड़ी है। सावन महीने में और महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर हजारो की संख्या मे भक्त यहां महादेव के दर्शन करने आते है।

ग्वालियर किले की तलहटी में बने कोटेश्वर महादेव मंदिर से एक पौराणिक मान्यता और ऐतिहासिक घटना जुड़ी है। माना जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब को भी इस शिवलिंग के आगे झुकना पड़ा था। इस मंदिर का निर्माण और विकास सिंधिया घराने के शासकों ने कराया था और आज भी इसकी देखरेख सिंधिया ट्रस्ट करता है।

इस मंदिर से 17 वीं सदी की एक ऐतिहासिक घटना जुड़ी है। कहा जाता है कि जब ग्वालियर किला मुगलों के अधीन था, तब औरंगजेब ने शिवलिंग को किले से नीचे फिंकवा दिया था। बाद में उसने वापस शिवलिंग को वहां से हटवाने के लिए दोबारा सैनिक भेजे, लेकिन अचानक वहां कई नाग प्रकट हो गए और नागो ने शिवलिंग को घेर लिया।

ये दृश्य देखकर सैनिक वहां से भाग गए। मान्यता है कि कोटेश्वर महादेव की कृपा से ऐसा हुआ। इस घटना के बाद शिवलिंग कई सालों तक मलबे में दबा रहा। फिर एक संत देव महाराज को सपने में नागो द्वारा रक्षित शिवलिंग के दर्शन हुए। उन्हें शिवलंग को बाहर निकालकर पुनः स्थापित करने का आदेश मिला। इसके बाद संत की प्रेरणा से मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। 18 वीं सदी में जयाजीराव सिंधिया ने मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया।

ऐसे पड़ा नाम – कोटेश्वर महादेव….

मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग को किले के एक ‘कोटे’ यानी ‘दीवार’ से नीचे फेंका गया था। जहां शिवलिंग गिरा, वही स्थान कोटेश्वर कहलाया। इसलिए इस मंदिर का नाम कोटेश्वर पड़ा। साथ ही इस क्षेत्र को भी कोटेश्वर नगर के नाम से जाना जाता है।

सन् 1937-38 में सिंधिया रियासत ने विजय प्राप्त की थी, जिसके बाद उसी काल में कोटेश्वर महादेव की प्रतिमा को पुनः स्थापित किया गया। तब से आज तक यहां प्रतिदिन सुबह मंगला आरती और शाम को संध्या आरती होती है। कोटेश्वर महादेव  मंदिर में स्थित शिवलिंग थोड़ी तिरछी है।