बीएमसी में फार्मासिस्ट बने बैठे बाबू, खरीदी में हो रही गड़बड़ी

स्वतंत्र समय, सागर

सरकार जहां एक ओर स्वास्थ सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है तो वहीं दूसरी ओर बुंदेलखण्ड मेडीकल कॉलेज (बीएमसी) में अधिकारियों की लापरवाही का आलम यह है कि बाबूओं के स्थान पर फार्मासिस्ट को बिठा दिया गया है जिन्हें प्रशासनिक कार्य की कोई जानकारी ही नहीं, और यही बड़ा कारण है कि बीएमसी में उपकरण एवं सामग्री खरीदी में घोटाले हो रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार बीएमसी की क्रय शाखा में मोहित एवं प्रवीण पाराशर, स्वशासी शाखा में भावना श्रीवास्तव, आवक-जावक शाखा में भानू पांडे, उपकरण स्टोर शाखा में धर्मेंद्र गर्ग, टीकाराम कोष्ठी, प्रवीण मरावी, छात्रा शाखा राजश्री दोकोड़ी, हॉस्पिटल की एनएचएम शाखा विजय पाल सहित स्थापना शाखा में भी प्रशासनिक अधिकारी के स्थान पर फार्मासिस्ट की ड्यूटी लगाई गई है। जबकि फार्मासिस्ट का मूल कार्य दवा वितरण एवं दवा स्टोर का रख-रखाव होता है।

बीएमसी में जहां आवश्यकता वहां पदस्थ नहीं किए जा रहे फार्मासिस्ट

बीएमसी का गाइनिक विभाग दूसरी मंजिल पर है जहां सैकड़ों गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए आती हैं। नियम अनुसार गाइनिक विभाग की ओपीडी से ही इन महिलाओं को दवा वितरण का कार्य किया जाना चाहिए लेकिन इस विभाग में फार्मासिस्ट न होने के कारण गर्भवती महिलाओं को दो फ्लोर नीचे आकर घंटों लाइन में खड़े रहकर दवा मिलने का इंतजार करना पड़ता है। जबकि गाइनिक विभाग द्वारा डीन से फार्मासिस्ट की मांग भी की जा चुकी है फिर भी इस विभाग को फार्मासिस्ट नहीं दिए गए। जिसके कारण गाइनिक विभाग का कार्य प्रभावित हो रहा है। ओपीडी में महिलाएं सिर्फ इलाज कराने के लिए आती हैं, दवा लेने के लिए गर्भवती महिलाओं को सभी मरीजों के साथ घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है।

दोनों विभागों के कार्य हो रहे प्रभावित

बीएमसी में फार्मासिस्ट को प्रशासनिक कार्यों में लगा देने से प्रशासनिक कार्य जैंसे खरीदी, रख-रखाव, उपकरणों की जानकारी आदि प्रभावित हो रहे हैं। चूंकि फार्मासिस्ट का मुख्य कार्य दवाईओं को लेकर होता है इसीलिए उन्हें प्रशासनिक कार्य की अधिक जानकारी नहीं होती। वहीं सूत्रों की मानें तो फार्मासिस्ट को बाबू बनाकर इसीलिए बिठाया गया है ताकि प्रशासन के कुछ ऐंसे अधिकारियों का तूगलकी फरमान चलता रहे जिनसे उन्हें लाभ है। क्योंकि अगर इन शाखाओं में प्रशासन का जानकार व्यक्ति बैठता तो घोटाले होना या भ्रष्टाचार होना संभव नहीं था, इसीलिए सोच-समझकर ही फार्मासिस्ट को ऐंसे स्थान पर बैठाया गया है। तो वहीं दूसरी ओर जहां फार्मासिस्ट की आवश्यकता है वहां इनके न होने से वह काम भी प्रभावित हो रहा है।