लेखक
पुष्परंजन
अगरतला स्थित बांग्लादेश ( Bangladesh ) वाणिज्य दूतावास पर तोडफ़ोड़ की घटना ने तूल पकड़ लिया है। दूतावास परिसर में प्रदर्शन, गेट तोडऩे, और झंडे का अपमान कोई भी सभ्य समाज नहीं सराहेगा। पीटीआई के अनुसार, ‘2 दिसंबर को अगरतला में बांग्लादेश मिशन के परिसर में कथित तौर पर 50 से अधिक प्रदर्शनकारियों ने प्रवेश किया, जिससे परिसर में मौजूद लोगों में चिंता पैदा हो गई। यह रैली विश्व हिंदू परिषद से संबद्ध हिंदू संघर्ष समिति के बैनर तले निकाली गई। चिन्मय कृष्ण ब्रह्मचारी की रिहाई, और हिन्दुओं की सुरक्षा जैसी मांगों को लेकर अगरतला में बांग्लादेश के सहायक उच्चायुक्त आरिफ मोहम्मद को एक ज्ञापन सौंपा गया।’ पीटीआई की रिपोर्ट से लगा नहीं कि तोडफ़ोड़ की कोई घटना हुई।
Bangladesh में उच्चायोग परिसर में घुसपैठ खेदजनक
जब बांग्लादेश ( Bangladesh ) में ऐसा कुछ हुआ नहीं, तो 13 लोगों की गिरफ्तारी, असिस्टेंट कमांडेंट और तीन सब इंस्पेक्टर सस्पेंड क्यों हुए, और इसके प्रकारांतर भारतीय विदेश मंत्रालय को खेद क्यों प्रकट करना पड़ा? विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, ‘अगरतला में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में परिसर में घुसपैठ की घटना बेहद खेदजनक है। भारत सरकार नई दिल्ली में बांग्लादेश उच्चायोग और देश के अन्य मिशनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कार्रवाई कर रही है।’ बांग्लादेश इस खेद प्रकाश से शांत नहीं हुआ है। ढाका में भारतीय उच्चायुक्त को बुलाकर विरोध जताना और अगरतला स्थित बांग्लादेश मिशन को बंद कर, इस चिंगारी को भडक़ाने की कवायद शुरू हो गई है। बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने अंतरिम सरकार से आग्रह किया कि वह अगरतला स्थित बांग्लादेश मिशन की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति सेना से सहायता मांगे। ऐसा लगता है, मानो उन्हें हमारी ओर से एक ग़लती होने का इंतज़ार था। लेकिन कोलकाता में जो कुछ हो रहा है, उससे दोनों मुल्कों में डैमेज कंट्रोल की बात बेमानी हो गई। क्या बांग्लादेशी मरीज़ों का इलाज रोकना मानवाधिकार हनन की श्रेणी में नहीं आता है?
बांग्लादेश में सूचना-प्रसारण प्रभार एक ऐसे छात्र नेता के हाथों में है, जो शेख हसीना को देश से भगाने की श्लाघा को पचा नहीं पा रहा है। नाहिद इस्लाम लगातार भारत पर निशाना साधते रहे हैं, कि वह ‘विभाजनकारी राजनीति और बांग्लादेश विरोधी बयानबाजी में लगा हुआ है। भारत का सत्तारूढ़ वर्ग अल्पसंख्यक विरोधी है।’ नाहिद में नकारात्मकता इतनी ज्यादा है, कि ऐसे शख्स से डैमेज कंट्रोल की आशा नहीं की जा सकती।
लेकिन, क्या बांग्लादेश का मीडिया सहनशील, और संयमित है? क्या फर्ज़ी ख़बरें वहां प्लांट नहीं की जा रहीं? पत्रकार यदि बहुसंख्यक की तानाशाही के विरुद्ध रिपोर्ट लिखें, देखिये उनका क्या हाल होता है। ग़ुलाम रब्बानी नदीम इस साल बांग्लादेश में मारे जाने वाले दूसरे पत्रकार हैं। बांग्लादेश में ब्लॉगर्स की हत्या तो अनगिनत है। पत्रकारों को चुप कराने के लिए ‘डिजिटल सुरक्षा कानून-2018’ है, जिसके तहत 14 साल तक की जेल हो सकती है। इसलिए, संपादक कारावास या अपने मीडिया आउटलेट के बंद होने का जोखिम उठाने से हिचकते हैं। बांग्लादेश में सिस्टम के खिलाफ कितनी रिपोर्टें छपती हैं? आप डेली स्टार, और दूसरे अख़बारों की रिपोर्टिंग का आकलन कर लीजिये। यही अखबार भारतीय मीडिया पर सवाल उठाकर अपना ‘नंबर’ बना रहे हैं।बांग्लादेश में प्रेस की आज़ादी, ‘रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर’ की हालिया रिपोर्ट में देख सकते हैं। 2024 के सूचकांक में 165वें पोजि़शन पर है बांग्लादेश। भारत उससे छह क़दम पीछे, 159वें पायदान पर है। श्रीलंका 150वें, दक्षिण एशिया में सबसे बदतर अफग़़ानिस्तान 178वें स्थान पर, नेपाल सबसे बेहतर 74वें स्थान पर दिखता है। ‘द डेली स्टार’ लगातार भारतीय मीडिया पर सवाल उठा रहा है। सही है, उठाना भी चाहिए। लेकिन, खुद के बहत्तर छेद भी पहले बांग्लादेशी मीडिया को देख लेना चाहिए। इससे हो यही रहा है, कि दोनों देश एक अघोषित मीडिया वॉर में फंस चुके हैं। आगे यह कितना विकृत रूप लेगा, कहना कठिन है।
अगस्त, 2020 में अमेरिका के मेरीलैंड यूनिवर्सिटी ने बांग्लादेश में फर्ज़ी सूचना देने वाले मीडिया पर एक शोध कराया। शोध पत्र दिलचस्प है। लिखा है, ‘सरकार के खिलाफ इन्वेस्टिगेशन करने की हिम्मत पत्रकार नहीं करते। नेता गलत सूचना और नफरत भरे भाषणों को फैलाकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग कर रहे हैं। भारत और म्यांमार, बांग्लादेश के बीच एक सामान्य आयाम, धर्म है। बांग्लादेश : इस्लाम 90 फीसद, भारत : हिंदू धर्म 80 प्रतिशत, म्यांमार : बौद्ध धर्म 88 प्रतिशत। इन सभी देशों में, धार्मिक अल्पसंख्यक अक्सर गलत सूचनाओं की वजह से टारगेट किये जाते हैं।’ चार साल में वो स्थिति बदली नहीं है। बल्कि, और बदतर हुई है।
2017 में ‘फैक्ट वॉच’ की शुरुआत बांग्लादेश के लिबरल आर्ट्स विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन और पत्रकारिता विभाग की पहल के रूप में हुई, जिसे ढाका स्थित अमेरिकन सेंटर से अनुदान मिला। बांग्लादेश का मीडिया कहां ठहरता है, केवल फैक्ट वाच द्वारा दी जानकारी को ही देख लें। इस संस्था ने पाया कि बांग्लादेश में पुरानी सामग्री (फोटो/वीडियो/टेक्स्ट) का दुरुपयोग होता है। झूठे और भ्रामक दावे, चरित्र हनन, एंटीवैक्सीन अभियान, स्रोतों की पुष्टि किए बिना कॉपी-पेस्ट पत्रकारिता, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाले काम सबसे अधिक किए जाते हैं।
देश को संभाले हुए मोहम्मद यूनुस के 120 दिन पूरे हो रहे हैं। अर्थव्यवस्था जर्जर हो चुकी है। ये लोग जून, 2025 तक विश्व बैंक, आईएमएफ, ओपेक फंड से कुल 6 अरब डॉलर पाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।