बाऊजी का चले जाना..एक युग का अंत

माहेश्वरी समाज इंदौर के अध्यक्ष रामस्वरूपजी धूत, जिन्हें पूरे समाज में “बाऊजी” के नाम से जाना जाता था, अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका इस तरह अचानक चले जाना सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग का अंत है।

बाऊजी हमेशा हर विषय पर पहले से चर्चा कर लेते थे, चाहे कोई कार्यक्रम हो, आयोजन हो या समाज की बैठक। लेकिन इस बार उन्होंने शायद यह जरूरी बात नहीं बताई कि वे अब विदा लेने वाले हैं। काश, बता पाते तो शायद उन्हें रोक लिया जाता।

समाज सेवा के प्रति समर्पण था जीवन का उद्देश्य

बाऊजी का पूरा जीवन सामाजिक कार्यों और जनसेवा के लिए समर्पित रहा। फिर चाहे निर्माण कार्य की बात हो, किसी नए ट्रस्ट भवन की योजना हो या किसी सेवा परियोजना का संचालन — बाऊजी हमेशा आगे रहे।

एक बार समाज की बैठक में जब किसी पदाधिकारी ने कहा कि उनके पास एफ.डी. के रूप में पर्याप्त धनराशि है, तो जवाब आया —“आपके पास एफ.डी. है, और हमारे पास बाऊजी हैं — जो समाज के किसी भी कार्य के लिए जितना फंड चाहिए, उतना जुटा लेते हैं।” यह कथन उनके प्रभाव, विश्वास और समर्पण का सजीव उदाहरण था।

समाज में अटूट साख और प्रेरणादायक व्यक्तित्व

जहां भी बाऊजी जाते थे, उनका विराट व्यक्तित्व और साख इतनी गहरी थी कि कोई उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाता था। उनकी कर्मठता, अनुशासन और समाज उत्थान के लिए सतत प्रयास उन्हें बाकी सभी से अलग बनाते थे।

चाहे समाज के स्कूल हों, ट्रस्ट द्वारा बनाए भवन हों, या प्रगति मंडल जैसे संगठन — बाऊजी ने जहां भी कदम रखा, वहां सफलता की नई मिसाल कायम की और फिर अगले लक्ष्य की ओर बढ़ गए।

सहजता, सरलता और समर्पण के प्रतीक

बाऊजी की पहचान सिर्फ नेतृत्व से नहीं, बल्कि उनकी सहजता और सरल स्वभाव से भी थी। वे कहते थे — “मेरा जीवन समाज के लिए समर्पित है। जहां भी बुलाया जाता है, मैं अवश्य पहुंचता हूं।” उनके लिए पद कोई अहमियत नहीं रखता था, बल्कि समाज की सेवा ही उनकी असली पहचान थी।

अस्सी की उम्र में भी ऊर्जा का प्रतीक

यह बात किसी को भी अचंभित कर सकती है कि 80 वर्ष की आयु में भी बाऊजी की ऊर्जा और कार्यशक्ति किसी युवा से कम नहीं थी। वे हर आयोजन में सक्रिय रहते, योजना बनाते, प्रेरित करते और खुद मैदान में उतरकर उदाहरण प्रस्तुत करते। उनके अंदर की यह जीवंतता समाज के हर सदस्य के लिए प्रेरणा का स्रोत रही।

बाऊजी का साया अब यादों में

अब ऐसा लगता है मानो घर का वह आश्रय देने वाला बड़ा व्यक्ति हमारे बीच नहीं रहा, जिसकी छत्रछाया में सब सुरक्षित महसूस करते थे। बाऊजी का जाना सिर्फ एक व्यक्ति की कमी नहीं, बल्कि एक ऐसी आत्मा की विदाई है, जिसने समाज को दिशा दी, सोच बदली और एकता की शक्ति को मजबूत किया।