आज, 23 अक्टूबर 2025 (गुरुवार) को पूरे देश में भाई दूज का पावन पर्व बड़े ही श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह त्योहार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है और इसे भाई-बहन के प्रेम, विश्वास और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। जिस तरह रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की रक्षा का वचन लेती हैं, उसी तरह भाई दूज पर वे उनके दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर आरती उतारती हैं, मिठाई खिलाती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनके प्रति अपने प्रेम का इज़हार करते हैं।
दीपावली उत्सव का अंतिम पर्व
भाई दूज के साथ ही दीपावली का पंच दिवसीय पर्व समाप्त होता है। दीपावली का हर दिन अपनी एक विशेष मान्यता रखता है—धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और अंत में भाई दूज। मान्यता है कि भाई दूज के दिन बहन द्वारा विधिपूर्वक तिलक किए जाने से भाई को दीर्घायु, यश और समृद्धि प्राप्त होती है। यही कारण है कि इस दिन पूरे देश में घर-घर में उत्सव का माहौल रहता है।
तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष भाई दूज की द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर, बुधवार की रात 8:17 बजे से शुरू होकर 23 अक्टूबर की रात 10:47 बजे तक रहेगी। हिंदू धर्म में त्योहारों की गणना उदया तिथि (सुबह की तिथि) से की जाती है, इसलिए भाई दूज 23 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। शुभ तिलक और पूजा के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त दोपहर 12:05 से 2:54 बजे तक, और अमृत चौघड़िया मुहूर्त 1:30 से 2:54 बजे तक रहेगा। इस अवधि में तिलक और पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है, जिससे भाई-बहन दोनों के जीवन में सुख, समृद्धि और सौहार्द बना रहता है।
भाई दूज की पूजा विधि
भाई दूज की पूजा सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार की जाती है।
इस दिन सुबह स्नान आदि कर घर को साफ-सुथरा किया जाता है और पूजा स्थान को सजाया जाता है।
• भाई को पूर्व दिशा की ओर और बहन को पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठाया जाता है।
• बहन रोली, चावल, फूल और दीपक से भाई का तिलक करती है।
• छोटे भाई को अंगूठे से, जबकि बड़े भाई को अनामिका उंगली से तिलक करना शुभ माना जाता है।
• तिलक के बाद नारियल या सुपारी भाई की गोद में रखी जाती है, और फिर उसे मिठाई खिलाई जाती है।
• पूजा के बाद भाई बहन को वस्त्र, उपहार या आभूषण भेंट करता है।
यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक भावनात्मक बंधन है जो भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत करती है।
भाई दूज की पौराणिक कथा
भाई दूज का यह पवित्र पर्व यमराज और यमुना की कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया के दो संतान थे—यमराज, जो मृत्यु के देवता बने, और यमुना, जो एक पवित्र नदी के रूप में पूजी जाती हैं। यमुना अपने भाई यमराज से बेहद स्नेह करती थीं और हमेशा चाहती थीं कि वे एक दिन उनके घर आएं और उनके हाथों से भोजन ग्रहण करें।
लेकिन यमराज अपने कर्मों में इतने व्यस्त थे कि वे हर बार आने का वादा करके भी नहीं आ पाते थे।
एक दिन, कार्तिक शुक्ल द्वितीया के अवसर पर यमराज अचानक यमुना के घर पहुँच गए। यमुना अपने भाई को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुईं। उन्होंने स्नान कराया, तिलक लगाया, आरती उतारी और स्वादिष्ट भोजन परोसा। यमराज बहन के प्रेम और सेवा भाव से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने यमुना से वरदान मांगने को कहा। तब यमुना ने कहा — “हे भैया! आप हर वर्ष इस दिन मेरे घर आएं, और जो भी बहन इस दिन अपने भाई को तिलक कर प्रेमपूर्वक भोजन कराए, उसे दीर्घायु और यमलोक का भय न हो।” यमराज ने यह वरदान स्वीकार किया और तभी से भाई दूज का पर्व मनाया जाने लगा।
भाई दूज का शुभ मंत्र
भाई दूज के तिलक के समय यह पावन मंत्र बोला जाता है —
“गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को।
सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे,
मेरे भाई आप बढ़ें, फूले-फलें, दीर्घायु रहें।”
इस मंत्र के उच्चारण से न केवल धार्मिक ऊर्जा का संचार होता है, बल्कि भाई-बहन के बीच का बंधन और गहरा होता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा और तिलक करने से भाई की दीर्घायु, समृद्धि और शुभ भाग्य की प्राप्ति होती है, वहीं बहन को भी सौभाग्य और मानसिक संतोष मिलता है।