भोपाल मेट्रो परियोजना की कुल लागत में इस वर्ष उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। अधिकारियों के अनुसार निर्माण सामग्री, भूमि अधिग्रहण और तकनीकी उपकरणों की बढ़ी कीमतों के कारण प्रति किलोमीटर खर्च 100 करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गया है। इसका सीधा असर पूरे नेटवर्क की अनुमानित लागत पर पड़ा है, जिसे अब पुनर्मूल्यांकन के लिए भेजा गया है।
परियोजना से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बढ़ते व्यय का असर वित्तीय प्रवाह पर भी पड़ रहा है। पुराने अनुमान 2019 में तैयार किए गए थे, जिन्हें अब लागत वृद्धि के मद्देनजर अद्यतन किया जा रहा है।
भोपाल में पिछले वर्षों में मेट्रो निर्माण की गति कई बार धीमी हुई। पुराने संदर्भों में 2020 और 2021 के दौरान भी लागत और समय-सीमा को लेकर समीक्षा की गई थी। इस बार लागत वृद्धि का पैमाना ज्यादा माना जा रहा है, इसलिए सरकार ने विस्तृत विश्लेषण शुरू किया है।
मुख्य लागत कारण
अधिकारियों का कहना है कि स्टील, सीमेंट और तकनीकी उपकरणों की कीमतें पिछले दो वर्षों में लगातार बढ़ी हैं। साथ ही स्टेशन परिसर, कॉरिडोर और डिपो से जुड़ी संरचनाओं की इंजीनियरिंग लागत भी बढ़ी है। भूमि अधिग्रहण में देरी और मुआवजा प्रक्रिया लंबी होने से कुल खर्च और बढ़ गया।
परियोजना का वर्तमान फोकस एम्स-करोंद कॉरिडोर पर है, जहां ट्रैक और स्टेशन संरचना का काम अंतिम चरण में बताया जा रहा है। हालांकि, नई लागत का असर शेष कॉरिडोर पर भी पड़ेगा, जिसके लिए नई वित्तीय योजना तैयार की जा रही है।
सरकारी समीक्षा और आगे की योजना
शहरी विकास विभाग ने संशोधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के निर्देश दिए हैं। केंद्र और राज्य दोनों के हिस्से की फंडिंग में संभावित बदलाव पर चर्चा की जा रही है। विभाग का मानना है कि लागत में बढ़ोतरी के बावजूद काम को तय समयसीमा में पूरा करने की कोशिश जारी रहेगी।
परियोजना से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि लागत वृद्धि देश के कई मेट्रो नेटवर्क में देखी जा रही है और इसके लिए वित्तीय ढांचे को लचीला बनाना जरूरी है। भोपाल मेट्रो की नई डीपीआर अगले कुछ महीनों में सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी, जिसके बाद आगे की स्वीकृतियां तय होंगी।
अधिकारियों का दावा है कि लागत बढ़ने के बावजूद यात्री सेवाएं शुरू करने की समयसीमा में बड़े बदलाव की संभावना नहीं है। हालांकि, अंतिम निर्णय संशोधित रिपोर्ट और फंडिंग मंजूरी पर निर्भर करेगा।